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Showing posts from April, 2020

Moral story about(गुस्से का सकारात्मक उपयोग)

Technical mythology           दोस्तों मैं, अब तक माइथोलॉजिकल स्टोरी ज्यादातर शेयर करता रहा हूं आपसे,लेकिन मैं आज आपको एक ऐसे विकलांग व्यक्ति के बारे में बताने जा रहा हूं, हैं जिसने अपने रोष का सकारात्मक उपयोग करके,न सिर्फ अपना जीवन बदल दिया, बल्कि समाज को भी एक नया रास्ता दिखाया। यह व्यक्ति हैं, जी ऑटो के founder  श्री निर्मल कुमार जी। बिहार के सिवान जिले के, रिसोरा गांव में 14 मई 1980 को इनका जन्म हुआ ।   इनके पिता जी राजाराम पेशे से एकशिक्षक थे । इनके अत्यंत पिछड़े गांव में बिजली ,पानी , दूरसंचार की व्यवस्था भी नहीं थी। 3 साल की उम्र में ये पोलियो के कारण विकलांग हो गए।मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। शिक्षा के प्रति जागरूकता दिखाई ।पेड़ के नीचे स्कूल चल रहा था। वहां से उन्होंने पढ़ाई की। चौथीकक्षा में जाकर उन्हें कमरे में बैठकर पढ़ने का मौका मिला। पूरा छात्र जीवन इन्होंने लालटेन की रोशनी में पढ़ कर निकाला। परंतु पढ़ने की ललक ऐसीकि दसवीं मेंप्रथम श्रेणी में पास हुए।फिर मेडिकल की तैयारी के लिए पटना आए।लेकिन उसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली। असफलता ने...

Nice mythological story about (महर्षि दधीचि का साहस)।

Technical mythology           महर्षि दधीचि बचपन से ही बड़े ही परोपकारी और निर्भीक थे। एक बार महर्षि दधीचि जब गुरुकुल में खेल रहे थे, तभी एक पेड़ पर एक जहरीला सांप चढ़ गया। उस पेड़ पर तोते का परिवार रहता था। जहरीले सांप ने तोते के नन्हे बच्चे को पकड़ लिया। अपने बच्चे की मृत्यु नजदीक देख तोता और तोती बिलखने लगे। पेड़ के नीचे देखने वालों की भीड़ जुट गई, लेकिन किसी की भी हिम्मत तोते के बच्चे को बचाने की नहीं हुई। महर्षि दधीचि जो पास ही में खेल रहे थे ,वहभी वहां पहुंचे। उन्हें वस्तुस्थिति को समझने में देर नहीं लगी। वह तुरंत उस पेड़ पर तोते के बच्चे को बचाने के लिए,चढ़ गए।नीचे खड़े लोग शोर मचाने लगे -"दधीचि! नीचे उतर आओ ।सांपतुम्हें डस लेगा"।दधीचि बोले-" जीव की रक्षा करना मानव का धर्म है मैं मानव धर्म का पालन कर रहा हूं।मैं तोते के बच्चे को विपत्ति में पड़ा देख,उससे मुंह नहीं मोड़ सकता"। उन्होंने लकड़ी मार-मार कर सांप के मुंह से तोते के बच्चे को छुड़ा लिया। अपने बच्चे को जीवित देख तोता और तोती चहचहा उठे। इससे पहले कि,वह क्रोधित सांप दधीचि पर हमला करता वह पेड़ से कूद...

Nice mythological story ashtavakra ( क्या अष्टावक्र कभी भी सीधे नहीं हुए)?

Technical mythology          अष्टावक्र मुनि कहोड मुनि के पुत्र थे। कहोड मुनि उद्दालक के शिष्य थे। उद्दालक ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें,शीघ्र ही सब वेदों का ज्ञान करा दिया और अपनी कन्या सुजाता का विवाह भी कहोड मुनि से कर दिया।  जब अष्टावक्र सुजाता के गर्भ में थे,तभी एक दिन प्रातः काल कहोड वेद पाठ कर रहे थे। वेद पाठ करने के दौरान कुछ मंत्र का उच्चारणउनसे अशुद्ध हुआ। तभी मां के गर्भ में स्थित बालक ने कहा -'पिताजी मंत्र पाठ अशुद्ध हो रहा है'। इस पर कहोर को अपमान मालूम हुआ। उन्होंने श्राप दे दियाकि-' जा तू आठ अंग से टेढ़ा उत्पन्न होगा'। इसी श्राप की वजह से अष्टावक्र मुनि आठ अंग टेढ़े  पैदा हुए।                   उन दिनों राजा जनक के यहां बंदी नाम के एक विद्वान ब्राह्मण आए हुए थे। उन्होंने राजा से शर्त करा ली थी कि ,मैं शास्त्रार्थ में जिसे हरा दूं,उसे पानी में डुबो दिया जाए,यही उसकी पराजय का दंड हो। और अगर मैं हार जाऊं तो मुझे भी वैसा ही दंड मिले। एक दिन सुजाता की इच्छा से उनके पति कहोड भी धन लाने के ल...

Story about Bharmha Puran (शत्रु को मित्र बना लेना ही बुद्धिमानी है बुद्धिमानी है)

Technical mythology          पूर्व काल में नमुचि दानवों का राजा था। उसका इंद्र के साथ बड़ा भयंकर लड़ाई हुआ। उस लड़ाई में इंद्र कहीं से भी नमुचि को परास्त नहीं कर पाए।नमुचि को ब्रह्मा का वरदान था कि,उसे न सुखे और न गीले अस्त्र से मारा जा सकता है। इस बात कोजानने के बाद इंद्रभय से व्याकुल हो गए और ऐरावत हाथी को छोड़कर,समुंद्र के फेन में घुस गए। दानव राज नमुचि भी उनके पीछे पड़ गया। इंद्र ने वज्र में ही समुंद्र के फेन को लपेटकर,उसके ऊपर प्रहार किया। इस प्रहार से दानव राज की मृत्यु हो गई। इसका कारण यह था कि बज्र में फेन को लपेटने के कारण से बज्र न गीला रहा न सूखा। अतः दिए हुए वरदान के कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई मय दानवों का राजा बन गया। मय ने इंद्र के विनाश के लिए भारी तपस्या की। उसने तप सेअनेक प्रकार की माया प्राप्त की ,जोदेवताओं के लिए भी भयंकर थी।उसने अपनी तपस्या से भगवान विष्णु से भी वर प्राप्त किया।मय दानी और प्रिय भाषी था।उसने इंद्र को जीतने के लिए अग्नि और अतिथि ब्राह्मणका भी पूजन शुरू कर दिया। याचको को भी मुंह मांगी वस्तुएं देने...

सुंदर कहानी यूनान देश की।

Technical mythology        मैं आज जो कहानी सुनाने जा रहा हूं, वह यूनान देश के थेरेस प्रांत की है।थेरस प्रांत में एक निर्धन बालक रहता था । वहअपने निर्धन माता-पिता के जीवन का सहारा था। वह बालक रोज लकड़ी काटने जंगल में जाता व लकड़ी काट के लाता । फिरसुंदर ढंग से गट्ठर बनाया करता था,और फिर उसको बाजार ले जाकर बेच देता। उससे जो पैसे मिलते थे,उन्हीं से अपने माता-पिता और अपने परिवार की देखभाल करताथा। एकदिन,रोज की तरह वह,जंगल से लकड़ियां काटकर,उनके गट्ठर बनाकर,बाजार में बेच रहा था , कि तभी एक प्रतिष्ठित पुरुष उसके पास आ पहुंचा ।वह पुरुष उसके गट्ठर को देख रहा था ,उस ने बच्चे से पूछा -'यह गट्ठर तुमने बनाया है '?तो लड़के ने जवाब दिया-' हां !यह गट्ठर मैंने बनाया है'। दरअसल वह गट्ठर बड़े ही सुंदर ढंग से बना था, उसे बहुत ही अच्छे ढंग से कलात्मक ढंग से बांधा गया था।उस प्रसिद्ध पुरुष ने उस बच्चे को कहा -'अगर तुमने यह गट्ठा बनाया है ,तो फिर से बांध के दिखाओ' ।उसबालक ने तत्काल उस गट्ठर को खोल दिया और फिर सेउस गट्ठर को वैसे ही कलात्मक ढंग से बांध दिया।उस बालक की खूबी से वह व्यक्ति...

Mahapurus kaise kast me bhi sahaj aur sant rahte hai.

Technical mythology      शेख फरीद से लोगों ने पूछा -'ऐसा क्यों होता है कि !महापुरुषों को कष्ट में भी कोई तकलीफ नहीं होती ,वह मुस्कुराते रहते हैं? शेख फरीद ने मुस्कुराते हुए प्रत्युत्तर में प्रश्न किया ।क्या तुमने सूखा गीला नारियल देखा है ?सुनने वालों ने सहमति में सिर हिलाया तो,शेख फरीद ने बोला -'जिस प्रकार गीले नारियल में गिरी,और खोल परस्पर चिपके रहते हैं, उसीप्रकार सामान्य मनुष्य ,शरीर से संसारसे चिपके रहते हैं ,और थोड़े ही कष्टों से दुखी हो जाते हैं ।परंतु महापुरुष उस सूखे नारियल की तरह होते हैं  ,जिसमें गिरीऔर खोल एकदम अलग होते हैं । वे विषय एवं वासनाओं से बंधे नहीं रहते , इसलिए दुख और कष्ट की घड़ी में भी आत्मा के तल पर निवास करते हैं और  इसलिए कष्टों में भी मुस्कुराते रहते हैं ।उनकेचेहरे पर शिकन नहीं होती ।वह सांसारिक मोहमाया बंधन से ऊपर उठ चुके होते हैं। इस तरह से शेख फरीद ने महापुरुषों के जीवन के बारे में सूखे और गीले नारियल के उदाहरण से सरल तरीके से बतलाया।

Nice mythological story about Lord Shiva and Jyothi Ling.

Mythological story by Amardip Mukul        सृष्टि के आरम्भ में सब जगह जल ही जल था। इस एकाणर्नव में भगवान विष्णु जो बालमुकुंद के रूप में वटवृक्ष के पत्तेपर स्थित थे,तब उनके नाभि से एक कमल का पुष्प उत्पन्न हुआ।उस कमल के आसन पर ब्रम्हा जी प्रकट हुए। उत्पन्न हो ने के बाद उन्होंने कहा कि मैं इस जगत का इश्वर हूं।मेरा कोई पिता नहीं हैं, मैं ही इस जगत का पिता हूं। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि," तुम मेरे द्वारा रचित हो मैंने तुम्हें रचाहै। अतः मैं इस जगत का इश्वर हूं।" दोनों में विवाद होने लगा। दोनों के विवाद के बीच एकाएक ,तेज ज्योतिपुंज उत्पन्न हो गया। जिसका कोई ओर छोर नहीं था।ब्रह्मा और विष्णु दोनों उस ज्योतिपुंज को देखकर आश्चर्यचकित थे।दोनों ने आपस में फैसला किया कि, विष्णु जी उस ज्योतिपुंज का अंत जानने के लिए ऊपर की तरफ जाएंगे और ब्रह्माजी उस ज्योतिपुंज का अंत जानने नीचे की ओर जाएंगे। दोनों उस ज्योतिपुंज में प्रविष्ट हो गए ,विष्णु ऊपर की तरफ और ब्रह्माजी नीचे की तरफ ,उसका आदि और अंत जानने निकल पड़े। हजारों साल तक भटकने के बाद भी, दोनों को ना उसका आदि मालूम पड़ा ,ना अंत...

Moral story of a legend.

आज के दौर में लोग  उधार लेकर भी शौक पूरा करते हैं। मगर  मैं आज एक ऐसे व्यक्ति की storyकोसुनाने जा रहा हूं, जिस ने अपने कर्मों से देश एवं समाज को एक नई दिशा दी, और सबकेसामने मिशाल  पेश किया।            बात सन् १८८० की है,स्कुल के प्रधान बच्चों को बता रहे थे कि परसों आप सब को पिकनिक पर ले जाया जाएगा। अतः, आप सब लोगों को घर से कुछ खाने का सामान लेकर आना है।               एक बच्चा जो उसी स्कूल में पढ़ाई करता था ने अपने, मां को सा री बातों को बताया। मां ने कहा कि-'बेटाघर में, सिर्फ खजूर हीं बचीं हुई है और घर पर मेरे पास पैसे भी नहीं है।तभी पिताजी भी आ गये। लड़के ने अपने पिता को भी पिकनिक की बात बताई, और पूछा कि- 'क्या आप के पास पैसे हैं'? पिताजी ने कहा कि,-'नहीं! मेरे पास भी पैसे नहीं हैं। पर कोई बात नहीं है , मैं पड़ोसी से मांग लाता हूं।'मगर उस स्वाभिमानी लड़के ने अपने पिता को रोकते हुए कहा कि,'-पिताजी! उधार की पिकनिक से पिकनिक न जाना ठीक है। जानते  हैं किवो स्वाभिमानी लड़का कौन था?     ...

Vidura ji kinke aavtar the?

महात्मा विदुर किसके अवतार थे? आज मैं  महाभारत में वर्णित इस की कहानी को  आपको बताने जा रहा हूं।           सतयुग में एक तेजस्वी ऋषि थे।उनका नाम माण्डव्य ऋषि था।वो मौन व्रत धारण कर तपस्या कर रहे थे।           एक बार राजा के राजमहल में चोरों ने चोरी की। राजमहल के रक्षकों को जब इस चोरी का पता चला तो, वे उनके पीछे लग गयेऔर पीछा करते हुए ऋषि के आश्रम के पास आ गये।चोर भी वही छुपे हुए थे।जब चोरों ने देखा कि वो ख़तरे में है तो वह चोरी के सभी सामानों को मुनि के आश्रम में ही फेंक दिया और भाग गए। रक्षकों ने चोरी के सामान को मुनि के आश्रम में देखा तो उन्हें चोरोका साथी समझ कर पकड़ लिया और राजा के पास ले गए और कहा कि महाराज यह भी उन चोरों का साथी है मगर मौन व्रत धारण करने का ढोंग कर रहा है। ये सब कुछ उन लोगों के बारे में जानता है मगर मौन व्रत का ढोंग कर के कुछ भी नहीं बताता है। इसके साथ क्या किया जाए?राजा ने कहा कि इस ढोंगी को शूली पर चढ़ा दो। सैनिकों ने राजा के आदेश के अनुसार मुनि कोशूली पर चढ़ा दिया।मगर मुनि के तपोबल के कारण शूली मुनि क...

Bhakta ka mahatwa

  एक बार नारद मुनि के मन में यह बात उठी की'जगत् में सबसे महान कौन है?'यह जानने के लिए वह सीधे भगवान विष्णु के पास पहुंचे। क्योंकि भगवान ही नित्य सत्य है एवं सबकुछ जानते हैं।                नारद जी वैकुंठ धाम जाकर उनसे पूछा कि'भगवन्!जगत में सबसे महान कौन है? यह बात बताने की कृपा करें।'भगवान उनका आशय समझ गयेऔर बोलें-        पृथ्वी तावदतीव विस्तृतिमती तद्वेष्टनं वारिधि:         पीतौअ्सौ कलशोद्भवेन मुनि ना स व्योम्नि खद्योतवत्।      तद् व्याप्तं दनुजाधिपस्य जयिना पादेन चैकेन खं      तं त्वं चेतसि धारयस्यविरतं त्वत्तोअ्स्ति नान्यो महान्। अर्थात ्- पृथ्वी अत्यंत विस्तार वाली है, परंतु वह सागर से घिरी है। सागर को अगस्त मुनि पी गये , अतः वह भी बड़ा नहीं है। और अगस्त मुनि भी अनंत आकाश में एक क्षुद्र जुगनू की तरह चमकते हैं, अतः वह भी बड़े नहीं है। आकाश कोभी भगवान वामन ने बलि के यज्ञमे एक पैर से ही नाप लिया था। अतः वह भी बड़ा नहीं है। और भगवान के पैर निरंतर भक्त के चित्त में र...

ज्ञान की फसल।

   एकभगवान बुद्ध वाराणसी में एक किसान के घर भिक्षा मांगने गए। साथ में कुछ शिष्य भी थे। किसान ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और फिर कहा-"मैं तो किसान हूं। कठोर श्रम करके अपना पेट पालता हूं। आप क्योबिना श्रम किए आहार प्राप्त करना चाहते हैं?"              बुद्ध ने शांत भाव से उत्तरदिया-'भैया, मैं भी किसान हूं, खेती करता हूं।              किसान बोला-'कैसे?'भगवान् बुद्ध ने कहा-'मै ज्ञान की खेती करता हूं।आत्मा मेरा खेत है। मैं ज्ञानके हल से जुताई कर श्रद्धा के बीजों को बोता हूं। तपस्या एवं साधना के जल से उसे सींचता हूं।सत्य एवं अहिंसा के सतत् प्रयास से निराई करता हूं। यदि तुम मुझे अपनी खेती का कुछ हिस्सा दोगे तो मैं भी तुम्हें अपनी खेती का कुछ हिस्सा दुंगा।       किसान को बुद्ध की बात पसंद आ गई,वह उनके चरणों में नतमस्तक हो गया। 

धर्माचार्य की राष्ट्र प्रेम

आज आप लोगों का मैं अपने पहले ब्लौगपोस्ट पर स्वागत कर रहा हूं। इस साधारण से व्लौग में मैं एक कहानी शेयर कररहा हूं।            बात सन्१९२५ की है जब प्रिश आफ वेल्स भारत की यात्रा पर थे और अंग्रेजी सरकार चाहती थी कि यहां की जनता भगवान की तरह ही श्रद्धा से उनका सम्मान/ पूजा करें।वह जहां भी जाए लो ग उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए।          उनकी सरकार जानती थी कि यहां के लोग अपने धर्माचार्य के आदेशों का पालन करने को तत्पर रहते हैं। अतः सरकार की ओर से पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ से अनुरोध किया कि वे उनको विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दे। एवं अपने अनुयायियों को भगवान के प्रति निधी के रूप में स्वागत करने का आदेश जारी करे।                     शंकराचार्य ने उन्हें बिना डरें उत्तर दिया कि, अंग्रेजी सरकार प्रजा पालक नहीं है। उन्होंने छल कपट से भारत को गुलाम बनाया है, उन्हें कैसे विष्णु का अवतार/प्रतिनिधि घोषित किया जा सकता है। अंग्रेजी सरकार उनके जवाब से ...