धर्माचार्य की राष्ट्र प्रेम

आज आप लोगों का मैं अपने पहले ब्लौगपोस्ट पर स्वागत कर रहा हूं। इस साधारण से व्लौग में मैं एक कहानी शेयर कररहा हूं।
           बात सन्१९२५ की है जब प्रिश आफ वेल्स भारत की यात्रा पर थे और अंग्रेजी सरकार चाहती थी कि यहां
की जनता भगवान की तरह ही श्रद्धा से उनका सम्मान/ पूजा करें।वह जहां भी जाए लो ग उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए।
         उनकी सरकार जानती थी कि यहां के लोग अपने धर्माचार्य के आदेशों का पालन करने को तत्पर रहते हैं। अतः सरकार की ओर से पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ से अनुरोध किया कि वे उनको विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दे। एवं अपने अनुयायियों को भगवान के प्रति निधी के रूप में स्वागत करने का आदेश जारी करे। 
                   शंकराचार्य ने उन्हें बिना डरें उत्तर दिया कि, अंग्रेजी सरकार प्रजा पालक नहीं है। उन्होंने छल कपट से भारत को गुलाम बनाया है, उन्हें कैसे विष्णु का अवतार/प्रतिनिधि घोषित किया जा सकता है। अंग्रेजी सरकार उनके जवाब से क्रुद्ध हो गई एवं उनको जेल में डाल दिया गया। साथ ही उनपर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। स्वामी जी ने
जेल की यातनाओं को सह लिया, मगर उनकी छल कपट वाली बात को नहीं माना।

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