Moral story about(गुस्से का सकारात्मक उपयोग)
Technical mythology
दोस्तों मैं, अब तक माइथोलॉजिकल स्टोरी ज्यादातर शेयर करता रहा हूं आपसे,लेकिन मैं आज आपको एक ऐसे विकलांग व्यक्ति के बारे में बताने जा रहा हूं, हैं जिसने अपने रोष का सकारात्मक उपयोग करके,न सिर्फ अपना जीवन बदल दिया, बल्कि समाज को भी एक नया रास्ता दिखाया। यह व्यक्ति हैं, जी ऑटो के founder श्री निर्मल कुमार जी। बिहार के सिवान जिले के, रिसोरा गांव में 14 मई 1980 को इनका जन्म हुआ ।
इनके पिता जी राजाराम पेशे से एकशिक्षक थे । इनके अत्यंत पिछड़े गांव में बिजली ,पानी , दूरसंचार की व्यवस्था भी नहीं थी। 3 साल की उम्र में ये पोलियो के कारण विकलांग हो गए।मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। शिक्षा के प्रति जागरूकता दिखाई ।पेड़ के नीचे स्कूल चल रहा था। वहां से उन्होंने पढ़ाई की। चौथीकक्षा में जाकर उन्हें कमरे में बैठकर पढ़ने का मौका मिला। पूरा छात्र जीवन इन्होंने लालटेन की रोशनी में पढ़ कर निकाला। परंतु पढ़ने की ललक ऐसीकि दसवीं मेंप्रथम श्रेणी में पास हुए।फिर मेडिकल की तैयारी के लिए पटना आए।लेकिन उसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली। असफलता ने इनको हताश नहीं किया।वह बीटेक( कृषि विज्ञान) के लिए जीवन रंगा कृषि विश्वविद्यालय हैदराबाद में प्रवेश लिया।वहां इनके अंग्रेजी का मजाक उड़ाया जाता था। क्योंकि यह बिहार से थे, इसलिए इनकी अंग्रेजी कमजोर थी।इनकी बोली का मजाक उड़ाया गया ।इसपरउन्होंने वहीं पर उत्तरभारतीय छात्रों के साथ मिलकर अंग्रेजी सीखने के लिए फिनिक्स नामक क्लब बनाया। और अंग्रेजी में भी प्रवीण होगये।
वहीं पर उन्हें आई आई एम के बारे में पता चला। फिर वह कैट की तैयारी करने लगे और पहले ही प्रयास मेंउन्हें iim-ahmedabad जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में प्रवेश मिल गया।एक बार की बात है जब,वह द्वितीय वर्ष में अपने दोस्तों के साथ बाहर खाना खाने के लिए ऑटो से गये। और जब वह हॉस्टल वापस आ रहे थे,तो इस इस बार समान दूरी और उतनी ही सवारी के लिए उन्हें ₹10 ज्यादा देने पड़े और ऑटो चालक से भी काफी बहस हुई,उन्हें उसकी बदतमीजी पसंद नहीं आई । उन्हें काफी रोष आया और उनका यह निजी अनुभव उनके दिलो-दिमाग में घूमता रहा,उन्होंने सोचा देशभर में लोग, इसी तरह से बेईमानी और बदतमीजी का शिकार होते रहेंगे।इसी पर उन्हें जी ऑटो नामक एक परियोजना का ख्याल आया।उन्होंने iim-ahmedabad के गेट से ही 15 ऑटो चालकों को चुना।उनके इंसेंटिव,बैंक खाता,जीवन बीमा,व्यवहार और स्वच्छता का प्रशिक्षण उन्होंने दिया। ऑटो की पेंटिंग कर उसका रंग रूप बदला,और auto में ही चार्जर अखबार,रेडियो, औरकूड़ेदान जैसी सुविधाएं जोड़ी।उनके इस नए प्रयोग का कुछ ऑटो चालक संघो ने विरोध भी किया। लेकिन जनता और संस्थाओं से उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आई। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी थे, जो अभी हमारे देश केप्रधानमंत्री हैं , उन्होंने निर्मल कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था,और प्रोत्साहित किया था।सन 2008 में उन्होंने 15 औटों से सफर शुरू किया था और आज यह करवा 21000 की संख्या पार कर गया है। नरेंद्र मोदी के द्वारा उद्घाटित उनका यह sansthan देश के 8 प्रमुख शहरों तक पहुंच गया है।
इस तरह से एक रोष ने नयेउद्यम का रास्ता तैयार कर दिया।
दोस्तों मैं, अब तक माइथोलॉजिकल स्टोरी ज्यादातर शेयर करता रहा हूं आपसे,लेकिन मैं आज आपको एक ऐसे विकलांग व्यक्ति के बारे में बताने जा रहा हूं, हैं जिसने अपने रोष का सकारात्मक उपयोग करके,न सिर्फ अपना जीवन बदल दिया, बल्कि समाज को भी एक नया रास्ता दिखाया। यह व्यक्ति हैं, जी ऑटो के founder श्री निर्मल कुमार जी। बिहार के सिवान जिले के, रिसोरा गांव में 14 मई 1980 को इनका जन्म हुआ ।
इनके पिता जी राजाराम पेशे से एकशिक्षक थे । इनके अत्यंत पिछड़े गांव में बिजली ,पानी , दूरसंचार की व्यवस्था भी नहीं थी। 3 साल की उम्र में ये पोलियो के कारण विकलांग हो गए।मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। शिक्षा के प्रति जागरूकता दिखाई ।पेड़ के नीचे स्कूल चल रहा था। वहां से उन्होंने पढ़ाई की। चौथीकक्षा में जाकर उन्हें कमरे में बैठकर पढ़ने का मौका मिला। पूरा छात्र जीवन इन्होंने लालटेन की रोशनी में पढ़ कर निकाला। परंतु पढ़ने की ललक ऐसीकि दसवीं मेंप्रथम श्रेणी में पास हुए।फिर मेडिकल की तैयारी के लिए पटना आए।लेकिन उसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली। असफलता ने इनको हताश नहीं किया।वह बीटेक( कृषि विज्ञान) के लिए जीवन रंगा कृषि विश्वविद्यालय हैदराबाद में प्रवेश लिया।वहां इनके अंग्रेजी का मजाक उड़ाया जाता था। क्योंकि यह बिहार से थे, इसलिए इनकी अंग्रेजी कमजोर थी।इनकी बोली का मजाक उड़ाया गया ।इसपरउन्होंने वहीं पर उत्तरभारतीय छात्रों के साथ मिलकर अंग्रेजी सीखने के लिए फिनिक्स नामक क्लब बनाया। और अंग्रेजी में भी प्रवीण होगये।
वहीं पर उन्हें आई आई एम के बारे में पता चला। फिर वह कैट की तैयारी करने लगे और पहले ही प्रयास मेंउन्हें iim-ahmedabad जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में प्रवेश मिल गया।एक बार की बात है जब,वह द्वितीय वर्ष में अपने दोस्तों के साथ बाहर खाना खाने के लिए ऑटो से गये। और जब वह हॉस्टल वापस आ रहे थे,तो इस इस बार समान दूरी और उतनी ही सवारी के लिए उन्हें ₹10 ज्यादा देने पड़े और ऑटो चालक से भी काफी बहस हुई,उन्हें उसकी बदतमीजी पसंद नहीं आई । उन्हें काफी रोष आया और उनका यह निजी अनुभव उनके दिलो-दिमाग में घूमता रहा,उन्होंने सोचा देशभर में लोग, इसी तरह से बेईमानी और बदतमीजी का शिकार होते रहेंगे।इसी पर उन्हें जी ऑटो नामक एक परियोजना का ख्याल आया।उन्होंने iim-ahmedabad के गेट से ही 15 ऑटो चालकों को चुना।उनके इंसेंटिव,बैंक खाता,जीवन बीमा,व्यवहार और स्वच्छता का प्रशिक्षण उन्होंने दिया। ऑटो की पेंटिंग कर उसका रंग रूप बदला,और auto में ही चार्जर अखबार,रेडियो, औरकूड़ेदान जैसी सुविधाएं जोड़ी।उनके इस नए प्रयोग का कुछ ऑटो चालक संघो ने विरोध भी किया। लेकिन जनता और संस्थाओं से उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आई। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी थे, जो अभी हमारे देश केप्रधानमंत्री हैं , उन्होंने निर्मल कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था,और प्रोत्साहित किया था।सन 2008 में उन्होंने 15 औटों से सफर शुरू किया था और आज यह करवा 21000 की संख्या पार कर गया है। नरेंद्र मोदी के द्वारा उद्घाटित उनका यह sansthan देश के 8 प्रमुख शहरों तक पहुंच गया है।
इस तरह से एक रोष ने नयेउद्यम का रास्ता तैयार कर दिया।
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ReplyDeleteNice
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