Nice mythological story about Lord Shiva and Jyothi Ling.
Mythological story by Amardip Mukul
सृष्टि के आरम्भ में सब जगह जल ही जल था। इस एकाणर्नव में भगवान विष्णु जो बालमुकुंद के रूप में वटवृक्ष के पत्तेपर स्थित थे,तब उनके नाभि से एक कमल का पुष्प उत्पन्न हुआ।उस कमल के आसन पर ब्रम्हा जी प्रकट हुए। उत्पन्न हो ने के बाद उन्होंने कहा कि मैं इस जगत का इश्वर हूं।मेरा कोई पिता नहीं हैं, मैं ही इस जगत का पिता हूं। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि," तुम मेरे द्वारा रचित हो मैंने तुम्हें
रचाहै। अतः मैं इस जगत का इश्वर हूं।" दोनों में विवाद होने लगा। दोनों के विवाद के बीच एकाएक ,तेज ज्योतिपुंज उत्पन्न हो गया। जिसका कोई ओर छोर नहीं था।ब्रह्मा और विष्णु दोनों उस ज्योतिपुंज को देखकर आश्चर्यचकित थे।दोनों ने आपस में फैसला किया कि, विष्णु जी उस ज्योतिपुंज का अंत जानने के लिए ऊपर की तरफ जाएंगे और ब्रह्माजी उस ज्योतिपुंज का अंत जानने नीचे की ओर जाएंगे। दोनों उस ज्योतिपुंज में प्रविष्ट हो गए ,विष्णु ऊपर की तरफ और ब्रह्माजी नीचे की तरफ ,उसका आदि और अंत जानने निकल पड़े। हजारों साल तक भटकने के बाद भी, दोनों को ना उसका आदि मालूम पड़ा ,ना अंत मालूम पड़ा। थक हार कर दोनों वापस अपने स्थान पर आ गए और लज्जित हो गए हैं।दोनों कहने लगे हम तो खुद को सबसे शक्तिशाली समझते थे, सृष्टिकर्ता समझते थे , लेकिन हम इस ज्योतिपुंज का नआदि जानपाएऔर न हम अंत जान पाए।तभी उस ज्योतिपुंज से एक दिव्य आवाज आई ,कि" घबराओ मत! तुम दोनों को मैंने ही उत्पन्न किया है ,मैं ही इस जगत का आदि सृजन कर्ता, पालन कर्ता और संहार कर्ता हूं ,मैं ही शिव हूं । मैंने ही तुम दोनों को रचा है। तुमदोनों अपने कर्तव्य का पालन करो ।ब्रह्मा सृष्टि करें । और विष्णु इस जगत का पालन करें।बाद में रुद्र के रूप में मैं खुद उत्पन्न होकर, इस जगत का संहार करूंगा। दोनों ने उस दिव्य ज्योतिर्लिंग को प्रणाम किया, तभी से संसार में शिव को ज्योतिर्लिंग के रूप में ही पूजा जाता है।
सृष्टि के आरम्भ में सब जगह जल ही जल था। इस एकाणर्नव में भगवान विष्णु जो बालमुकुंद के रूप में वटवृक्ष के पत्तेपर स्थित थे,तब उनके नाभि से एक कमल का पुष्प उत्पन्न हुआ।उस कमल के आसन पर ब्रम्हा जी प्रकट हुए। उत्पन्न हो ने के बाद उन्होंने कहा कि मैं इस जगत का इश्वर हूं।मेरा कोई पिता नहीं हैं, मैं ही इस जगत का पिता हूं। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि," तुम मेरे द्वारा रचित हो मैंने तुम्हें
रचाहै। अतः मैं इस जगत का इश्वर हूं।" दोनों में विवाद होने लगा। दोनों के विवाद के बीच एकाएक ,तेज ज्योतिपुंज उत्पन्न हो गया। जिसका कोई ओर छोर नहीं था।ब्रह्मा और विष्णु दोनों उस ज्योतिपुंज को देखकर आश्चर्यचकित थे।दोनों ने आपस में फैसला किया कि, विष्णु जी उस ज्योतिपुंज का अंत जानने के लिए ऊपर की तरफ जाएंगे और ब्रह्माजी उस ज्योतिपुंज का अंत जानने नीचे की ओर जाएंगे। दोनों उस ज्योतिपुंज में प्रविष्ट हो गए ,विष्णु ऊपर की तरफ और ब्रह्माजी नीचे की तरफ ,उसका आदि और अंत जानने निकल पड़े। हजारों साल तक भटकने के बाद भी, दोनों को ना उसका आदि मालूम पड़ा ,ना अंत मालूम पड़ा। थक हार कर दोनों वापस अपने स्थान पर आ गए और लज्जित हो गए हैं।दोनों कहने लगे हम तो खुद को सबसे शक्तिशाली समझते थे, सृष्टिकर्ता समझते थे , लेकिन हम इस ज्योतिपुंज का नआदि जानपाएऔर न हम अंत जान पाए।तभी उस ज्योतिपुंज से एक दिव्य आवाज आई ,कि" घबराओ मत! तुम दोनों को मैंने ही उत्पन्न किया है ,मैं ही इस जगत का आदि सृजन कर्ता, पालन कर्ता और संहार कर्ता हूं ,मैं ही शिव हूं । मैंने ही तुम दोनों को रचा है। तुमदोनों अपने कर्तव्य का पालन करो ।ब्रह्मा सृष्टि करें । और विष्णु इस जगत का पालन करें।बाद में रुद्र के रूप में मैं खुद उत्पन्न होकर, इस जगत का संहार करूंगा। दोनों ने उस दिव्य ज्योतिर्लिंग को प्रणाम किया, तभी से संसार में शिव को ज्योतिर्लिंग के रूप में ही पूजा जाता है।
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