Nice mythological story about (महर्षि दधीचि का साहस)।
Technical mythology
महर्षि दधीचि बचपन से ही बड़े ही परोपकारी और निर्भीक थे। एक बार महर्षि दधीचि जब गुरुकुल में खेल रहे थे, तभी एक पेड़ पर एक जहरीला सांप चढ़ गया। उस पेड़ पर तोते का परिवार रहता था। जहरीले सांप ने तोते के नन्हे बच्चे को पकड़ लिया। अपने बच्चे की मृत्यु नजदीक देख तोता और तोती बिलखने लगे। पेड़ के नीचे देखने वालों की भीड़ जुट गई, लेकिन किसी की भी हिम्मत तोते के बच्चे को बचाने की नहीं हुई। महर्षि दधीचि जो पास ही में खेल रहे थे ,वहभी वहां पहुंचे। उन्हें वस्तुस्थिति को समझने में देर नहीं लगी। वह तुरंत उस पेड़ पर तोते के बच्चे को बचाने के लिए,चढ़ गए।नीचे खड़े लोग शोर मचाने लगे -"दधीचि! नीचे उतर आओ ।सांपतुम्हें डस लेगा"।दधीचि बोले-" जीव की रक्षा करना मानव का धर्म है मैं मानव धर्म का पालन कर रहा हूं।मैं तोते के बच्चे को विपत्ति में पड़ा देख,उससे मुंह नहीं मोड़ सकता"। उन्होंने लकड़ी मार-मार कर सांप के मुंह से तोते के बच्चे को छुड़ा लिया। अपने बच्चे को जीवित देख तोता और तोती चहचहा उठे। इससे पहले कि,वह क्रोधित सांप दधीचि पर हमला करता वह पेड़ से कूद गए। उन्हें काफी चोट आई। लोगों ने उनसे पूछा-" दधीचि!तुम्हें डर नहीं लगा?"मुनि ने उत्तर दिया-" डरना कैसा?"डरना है तो गलत काम से डरो। अच्छा कार्य करने वालों की रक्षा तो स्वयं भगवान करता है।"
दधीचि की लोक रक्षा की भावना आगे इतनी प्रगाढ़ हो गई कि,उन्होंने अपने शरीर की हड्डियां तक देवताओं को दान में दे दी। आज भी दधीचि महर्षि अपने इन्हीं भावों के कारण विश्व विख्यात है।
महर्षि दधीचि बचपन से ही बड़े ही परोपकारी और निर्भीक थे। एक बार महर्षि दधीचि जब गुरुकुल में खेल रहे थे, तभी एक पेड़ पर एक जहरीला सांप चढ़ गया। उस पेड़ पर तोते का परिवार रहता था। जहरीले सांप ने तोते के नन्हे बच्चे को पकड़ लिया। अपने बच्चे की मृत्यु नजदीक देख तोता और तोती बिलखने लगे। पेड़ के नीचे देखने वालों की भीड़ जुट गई, लेकिन किसी की भी हिम्मत तोते के बच्चे को बचाने की नहीं हुई। महर्षि दधीचि जो पास ही में खेल रहे थे ,वहभी वहां पहुंचे। उन्हें वस्तुस्थिति को समझने में देर नहीं लगी। वह तुरंत उस पेड़ पर तोते के बच्चे को बचाने के लिए,चढ़ गए।नीचे खड़े लोग शोर मचाने लगे -"दधीचि! नीचे उतर आओ ।सांपतुम्हें डस लेगा"।दधीचि बोले-" जीव की रक्षा करना मानव का धर्म है मैं मानव धर्म का पालन कर रहा हूं।मैं तोते के बच्चे को विपत्ति में पड़ा देख,उससे मुंह नहीं मोड़ सकता"। उन्होंने लकड़ी मार-मार कर सांप के मुंह से तोते के बच्चे को छुड़ा लिया। अपने बच्चे को जीवित देख तोता और तोती चहचहा उठे। इससे पहले कि,वह क्रोधित सांप दधीचि पर हमला करता वह पेड़ से कूद गए। उन्हें काफी चोट आई। लोगों ने उनसे पूछा-" दधीचि!तुम्हें डर नहीं लगा?"मुनि ने उत्तर दिया-" डरना कैसा?"डरना है तो गलत काम से डरो। अच्छा कार्य करने वालों की रक्षा तो स्वयं भगवान करता है।"
दधीचि की लोक रक्षा की भावना आगे इतनी प्रगाढ़ हो गई कि,उन्होंने अपने शरीर की हड्डियां तक देवताओं को दान में दे दी। आज भी दधीचि महर्षि अपने इन्हीं भावों के कारण विश्व विख्यात है।
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