Nice mythological story ashtavakra ( क्या अष्टावक्र कभी भी सीधे नहीं हुए)?
Technical mythology
अष्टावक्र मुनि कहोड मुनि के पुत्र थे। कहोड मुनि उद्दालक के शिष्य थे। उद्दालक ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर
उन्हें,शीघ्र ही सब वेदों का ज्ञान करा दिया और अपनी कन्या सुजाता का विवाह भी कहोड मुनि से कर दिया। जब अष्टावक्र सुजाता के गर्भ में थे,तभी एक दिन प्रातः काल कहोड वेद पाठ कर रहे थे। वेद पाठ करने के दौरान कुछ मंत्र का उच्चारणउनसे अशुद्ध हुआ। तभी मां के गर्भ में स्थित बालक ने कहा -'पिताजी मंत्र पाठ अशुद्ध हो रहा है'। इस पर कहोर को अपमान मालूम हुआ। उन्होंने श्राप दे दियाकि-' जा तू आठ अंग से टेढ़ा उत्पन्न होगा'। इसी श्राप की वजह से अष्टावक्र मुनि आठ अंग टेढ़े पैदा हुए।
उन दिनों राजा जनक के यहां बंदी नाम के एक विद्वान ब्राह्मण आए हुए थे। उन्होंने राजा से शर्त करा ली थी कि ,मैं शास्त्रार्थ में जिसे हरा दूं,उसे पानी में डुबो दिया जाए,यही उसकी पराजय का दंड हो। और अगर मैं हार जाऊं तो मुझे भी वैसा ही दंड मिले। एक दिन सुजाता की इच्छा से उनके पति कहोड भी धन लाने के लिए राजा जनक के यहां गए। यहां बंदी जी से उनका शास्त्रार्थ हुआ ।शास्त्रार्थ में कहोड हार गए। तय शर्तके अनुसार से उन्हें पानी में डुबो दिया गया। अष्टावक्र कुछ बड़े हुए तो,उन्हें माता से अपने पिता की मौत का पूरा विवरण मिला। फिर तो वह भी जनक के दरबार में गए और बंदी से शास्त्रार्थ किया। उन्होंने बंदी को शास्त्रार्थ में पराजित किया। उस समय बंदी ने अपना भेद खोलते हुए कहा कि,-" मैं वरुण का पुत्र हूं! मेरेपिता वरुण देव यज्ञ कर रहे हैं। उस यज्ञ में 12 ब्राह्मणों की जरूरत थी ।मैंनेचुने हुए 12 विद्वान ब्राह्मणों,को पानी में डुबोने के बहाने यज्ञ में भेजा है। वह लोग अब आते ही होंगे। यह कहकर बंदी स्वयं जल में कूद पड़े ।उनके कूदतेही 12 ब्राह्मण तत्काल वहां गए कहोड भी उनमें से एक थे। वह अपने पुत्र की योग्यता से बड़े ही खुश थे। उन्होंने अष्टावक्र को समन्गा नदी में नहला कर उनके संग सीधे कर दिए। इस तरह से अष्टावक्र के सारे अंग पुनः सीधे हो गए। या कथा महाभारत के वनपर्व में आई है।
अष्टावक्र मुनि कहोड मुनि के पुत्र थे। कहोड मुनि उद्दालक के शिष्य थे। उद्दालक ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर
उन्हें,शीघ्र ही सब वेदों का ज्ञान करा दिया और अपनी कन्या सुजाता का विवाह भी कहोड मुनि से कर दिया। जब अष्टावक्र सुजाता के गर्भ में थे,तभी एक दिन प्रातः काल कहोड वेद पाठ कर रहे थे। वेद पाठ करने के दौरान कुछ मंत्र का उच्चारणउनसे अशुद्ध हुआ। तभी मां के गर्भ में स्थित बालक ने कहा -'पिताजी मंत्र पाठ अशुद्ध हो रहा है'। इस पर कहोर को अपमान मालूम हुआ। उन्होंने श्राप दे दियाकि-' जा तू आठ अंग से टेढ़ा उत्पन्न होगा'। इसी श्राप की वजह से अष्टावक्र मुनि आठ अंग टेढ़े पैदा हुए।
उन दिनों राजा जनक के यहां बंदी नाम के एक विद्वान ब्राह्मण आए हुए थे। उन्होंने राजा से शर्त करा ली थी कि ,मैं शास्त्रार्थ में जिसे हरा दूं,उसे पानी में डुबो दिया जाए,यही उसकी पराजय का दंड हो। और अगर मैं हार जाऊं तो मुझे भी वैसा ही दंड मिले। एक दिन सुजाता की इच्छा से उनके पति कहोड भी धन लाने के लिए राजा जनक के यहां गए। यहां बंदी जी से उनका शास्त्रार्थ हुआ ।शास्त्रार्थ में कहोड हार गए। तय शर्तके अनुसार से उन्हें पानी में डुबो दिया गया। अष्टावक्र कुछ बड़े हुए तो,उन्हें माता से अपने पिता की मौत का पूरा विवरण मिला। फिर तो वह भी जनक के दरबार में गए और बंदी से शास्त्रार्थ किया। उन्होंने बंदी को शास्त्रार्थ में पराजित किया। उस समय बंदी ने अपना भेद खोलते हुए कहा कि,-" मैं वरुण का पुत्र हूं! मेरेपिता वरुण देव यज्ञ कर रहे हैं। उस यज्ञ में 12 ब्राह्मणों की जरूरत थी ।मैंनेचुने हुए 12 विद्वान ब्राह्मणों,को पानी में डुबोने के बहाने यज्ञ में भेजा है। वह लोग अब आते ही होंगे। यह कहकर बंदी स्वयं जल में कूद पड़े ।उनके कूदतेही 12 ब्राह्मण तत्काल वहां गए कहोड भी उनमें से एक थे। वह अपने पुत्र की योग्यता से बड़े ही खुश थे। उन्होंने अष्टावक्र को समन्गा नदी में नहला कर उनके संग सीधे कर दिए। इस तरह से अष्टावक्र के सारे अंग पुनः सीधे हो गए। या कथा महाभारत के वनपर्व में आई है।
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