Story about Bharmha Puran (शत्रु को मित्र बना लेना ही बुद्धिमानी है बुद्धिमानी है)
Technical mythology
पूर्व काल में नमुचि दानवों का राजा था। उसका इंद्र के साथ बड़ा भयंकर लड़ाई हुआ। उस लड़ाई में इंद्र कहीं से भी नमुचि को परास्त नहीं कर पाए।नमुचि को ब्रह्मा का वरदान था कि,उसे न सुखे और न गीले अस्त्र से मारा जा सकता है। इस बात कोजानने के बाद इंद्रभय से व्याकुल हो गए और ऐरावत हाथी को छोड़कर,समुंद्र के फेन में घुस गए। दानव राज नमुचि भी उनके पीछे पड़ गया। इंद्र ने वज्र में ही समुंद्र के फेन को लपेटकर,उसके ऊपर प्रहार किया। इस प्रहार से दानव राज की मृत्यु हो गई। इसका कारण यह था कि बज्र में फेन को लपेटने के कारण से बज्र न गीला रहा न सूखा। अतः दिए हुए वरदान के कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई मय दानवों का राजा बन गया। मय ने इंद्र के विनाश के लिए भारी तपस्या की। उसने तप सेअनेक प्रकार की माया प्राप्त की ,जोदेवताओं के लिए भी भयंकर थी।उसने अपनी तपस्या से भगवान विष्णु से भी वर प्राप्त किया।मय दानी और प्रिय भाषी था।उसने इंद्र को जीतने के लिए अग्नि और अतिथि ब्राह्मणका भी पूजन शुरू कर दिया। याचको को भी मुंह मांगी वस्तुएं देने लगा। कोई भी याचक उसके पास से खाली हाथ नहीं जाता था। इंद्र ने वायु से उसकी सभी गतिविधियां जान ली।तब वह भी ब्राह्मण का वेश बनाकर ,उसकेपास याचक बनकर गए। इंद्र ने कहा -"दानव- राज,मैं एक याचक हूं , मुझे मनोवांछित वर दे। मैंने सुना है कि,आप दाताओं के सिरमौर है। अतः आपके पास आया हूं।"मय उन्हें कहाकि -"दिया हुआ ही समझो।मैं किसी को निराश नहीं करता,जो भी मांगना हो,बेखौफ होकर मांगो।" उसके ऐसा कहने पर,इंद्र ने कहा -"मैं आपके साथ मित्रता चाहता हूं"। यह सुनकर मय ने कहा कि,-"आपके साथ मेरा तो वैर है ही नहीं, फिर ऐसा वर क्यो?"तब इंद्र ने अपने वास्तविक रूप को प्रकट किया। इंद्र को पहचान करके मयको बड़ा भारी आश्चर्य हुआ।उसने कहा-" यह क्या बात है? तुम तो वज्र धारी हो, तुमने ऐसा कार्य क्यों किया? छुपके क्यों आए?"इंद्र ने हंसते हुए ,यहकह कर उसे गले लगाया कि विद्वान पुरुष किसी भी उपाय से अपने अभीष्ट कार्य को सिद्ध करते हैं और दुश्मन को भी मित्र बना लेते हैं अपने दुश्मन को भी मित्र बना लेना,वो भी किसी भी तरह से, सबसे अच्छा होता है। तब से मय के साथ इंद्र की गहरी मैत्री हो गई। मैं सदा के लिए इंद्र का हितेषी हो गया।
आज का मोरल यह है कि किसी भी तरह से अपने दुश्मन को मित्र बना लेना ही सबसे उत्तम है। विद्वान पुरुष ऐसा ही करते हैं।
पूर्व काल में नमुचि दानवों का राजा था। उसका इंद्र के साथ बड़ा भयंकर लड़ाई हुआ। उस लड़ाई में इंद्र कहीं से भी नमुचि को परास्त नहीं कर पाए।नमुचि को ब्रह्मा का वरदान था कि,उसे न सुखे और न गीले अस्त्र से मारा जा सकता है। इस बात कोजानने के बाद इंद्रभय से व्याकुल हो गए और ऐरावत हाथी को छोड़कर,समुंद्र के फेन में घुस गए। दानव राज नमुचि भी उनके पीछे पड़ गया। इंद्र ने वज्र में ही समुंद्र के फेन को लपेटकर,उसके ऊपर प्रहार किया। इस प्रहार से दानव राज की मृत्यु हो गई। इसका कारण यह था कि बज्र में फेन को लपेटने के कारण से बज्र न गीला रहा न सूखा। अतः दिए हुए वरदान के कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसका छोटा भाई मय दानवों का राजा बन गया। मय ने इंद्र के विनाश के लिए भारी तपस्या की। उसने तप सेअनेक प्रकार की माया प्राप्त की ,जोदेवताओं के लिए भी भयंकर थी।उसने अपनी तपस्या से भगवान विष्णु से भी वर प्राप्त किया।मय दानी और प्रिय भाषी था।उसने इंद्र को जीतने के लिए अग्नि और अतिथि ब्राह्मणका भी पूजन शुरू कर दिया। याचको को भी मुंह मांगी वस्तुएं देने लगा। कोई भी याचक उसके पास से खाली हाथ नहीं जाता था। इंद्र ने वायु से उसकी सभी गतिविधियां जान ली।तब वह भी ब्राह्मण का वेश बनाकर ,उसकेपास याचक बनकर गए। इंद्र ने कहा -"दानव- राज,मैं एक याचक हूं , मुझे मनोवांछित वर दे। मैंने सुना है कि,आप दाताओं के सिरमौर है। अतः आपके पास आया हूं।"मय उन्हें कहाकि -"दिया हुआ ही समझो।मैं किसी को निराश नहीं करता,जो भी मांगना हो,बेखौफ होकर मांगो।" उसके ऐसा कहने पर,इंद्र ने कहा -"मैं आपके साथ मित्रता चाहता हूं"। यह सुनकर मय ने कहा कि,-"आपके साथ मेरा तो वैर है ही नहीं, फिर ऐसा वर क्यो?"तब इंद्र ने अपने वास्तविक रूप को प्रकट किया। इंद्र को पहचान करके मयको बड़ा भारी आश्चर्य हुआ।उसने कहा-" यह क्या बात है? तुम तो वज्र धारी हो, तुमने ऐसा कार्य क्यों किया? छुपके क्यों आए?"इंद्र ने हंसते हुए ,यहकह कर उसे गले लगाया कि विद्वान पुरुष किसी भी उपाय से अपने अभीष्ट कार्य को सिद्ध करते हैं और दुश्मन को भी मित्र बना लेते हैं अपने दुश्मन को भी मित्र बना लेना,वो भी किसी भी तरह से, सबसे अच्छा होता है। तब से मय के साथ इंद्र की गहरी मैत्री हो गई। मैं सदा के लिए इंद्र का हितेषी हो गया।
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