Vidura ji kinke aavtar the?

महात्मा विदुर किसके अवतार थे? आज मैं  महाभारत में वर्णित इस की कहानी को  आपको बताने जा रहा हूं।
          सतयुग में एक तेजस्वी ऋषि थे।उनका नाम माण्डव्य ऋषि था।वो मौन व्रत धारण कर तपस्या कर रहे थे।
          एक बार राजा के राजमहल में चोरों ने चोरी की। राजमहल के रक्षकों को जब इस चोरी का पता चला तो, वे उनके पीछे लग गयेऔर पीछा करते हुए ऋषि के आश्रम के पास आ गये।चोर भी वही छुपे हुए थे।जब चोरों ने देखा कि वो ख़तरे में है तो वह चोरी के सभी सामानों को मुनि के आश्रम में ही फेंक दिया और भाग गए। रक्षकों ने चोरी के सामान को मुनि के आश्रम में देखा तो उन्हें चोरोका साथी समझ कर पकड़ लिया और राजा के पास ले गए और कहा कि महाराज यह भी उन चोरों का साथी है मगर मौन व्रत धारण करने का ढोंग कर रहा है। ये सब कुछ उन लोगों के बारे में जानता है मगर मौन व्रत का ढोंग कर के कुछ भी नहीं बताता है। इसके साथ क्या किया जाए?राजा ने कहा कि इस ढोंगी को शूली पर चढ़ा दो। सैनिकों ने राजा के आदेश के अनुसार मुनि कोशूली पर चढ़ा दिया।मगर मुनि के तपोबल के कारण शूली मुनि के शरीर का छेदन नहीं कर पाया।वह उनके शरीर में आधा ही अंदर जा पाया। सुबह जब राजा को उनके सैनिकों ने इस मामले की जानकारी दी तो वह समझ गया कि उससे बड़ी भूल हो गई है। आज तक शूली पर चढ़ कर कोई भी व्यक्ति नहीं जिंदा रह पाया है, मगर यह जिंदा है, ज़रूर ही यह कोई बड़े ऋषि है। वह उनके शाप के भयसे कांप उठा। उसने मुनि को शूली पर से नीचे उतरवाया, और फिर उनके कदमों में गिर गया और माफी मांगने लगा। मुनि ने अपने दर्द को भूलकर उसे क्षमा कर दिया। इसके बाद उन्होंने समाधी लगा कर देह त्याग दिया और परम धाम चले गए। वहां पर धर्मराज ने उनका स्वागत किया। मुनि ने उनसे पूछा कि मैंने तो कभी अपने होशोहवास में कोई भी गलत काम नहीं किया है। मगर फिर भी मुझे शूली की पीड़ा झेलनी पड़ी। इस कारण क्याहै? धर्मराज ने कहा कि -'हे मुनि! आप ने 1३वर्ष की अवस्था में तितली के पुच्छ भाग में आप सीक घुसा दिया करते थे, इसीलिए तो आपको ये दंड झेलना पड़ा है। उनके इस जबाव पर मुनि कुपित हो ग्रे, उन्होंने कहा कि १३वर्षके बालक को समझ नहीं होती है। आज से ही मैं यह व्यवस्था करता हूं कि १३वर्ष की अवस्था तक यदि कोई बच्चा कोई गलती करता है तो यह पाप की श्रेणी में नहीं आयेगा। साथ ही उन्होंने धर्मराज कोशाप दिया कि आपको धरती पर जन्म लेना पड़ेगा और वहां पर आप पाप -पुण्य , नीति-अनीति, धर्म-अधर्म के बातों में उलझे रह जाओगे मगर बातों को सुलझा नहीं पाओगे।
     इस तरह माण्डव्य मुनि के श्राप के कारण ही धर्म राज ने विदुर जी के रूप में जन्म लिया और वो जीवन भर कौरवों को पाप -पुण्य , धर्म-अधर्म, नीति-अनीति के बातों को समझाते रहे मगर कोई भी उनकी बातों को नहीं मानता था।


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