Nice moral story-(कर्तव्य परायणता)
Technical mythology
उज्जैन रियासत में महाराजा सज्जन सिंह का राज्य था। महाराजा बड़े ही न्याय प्रिय एवं प्रजा पालक थे। चारों और उनकी बड़ी ख्याति थी। रियासत के एक विशेष कार्यालय में,
श्री श्रीनिवास नाम के एक वरिष्ठ अधिकारी थे। यह कार्यालय वस्तुतः राज्य के विनिर्माण क्षेत्र का कार्य देखता था।श्री निवास जी बेहद आत्मीयता एवं सज्जनता से अपने कर्मचारियों से व्यवहार करते थे, और बेहद ही इमानदार भी थे। उनके कार्यालय के अफसर उनके इस ईमानदारी और सज्जनता का फायदा उठाते हुए, खर्च के झूठे कागजात तैयार कर धोखे से श्रीनिवास जी से हस्ताक्षर करवा लिए।श्री श्रीनिवास जी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर भरोसा करते थे,अतः उन्होंने खर्च के संबंध में पूछताछ नहीं की। सरकारी कोष एक बड़ी रकम उन बेईमान कर्मचारियों के हाथ आ गई। किंतु अपराध छिपा नहीं रहता। दूसरे विभाग के कुछ लोगों को इसका पता चल गया। उन्होंने महाराज से शिकायत कर दी।
फैसले का दिन आया। राज्य के कर्मचारी और नागरिक बड़े ही कौतूहलता से देख रहे थे कि, अपने पिता के मामले में न्यायाधीश श्री शिवशक्ति जी क्या निर्णय लेते हैं ?आजउनके कर्तव्य परायणता की परीक्षा थी। योग्य पिता के योग्य पुत्र ने अपने पद की गरिमा और न्यायाधीश के कर्तव्य को ध्यान में रखते हुए निर्णय दिया-'मुलजिम के हस्ताक्षर के अनुसार,जिन्हें वह स्वयं भी स्वीकार करता है, उसे अपराधिक घोषित किया जाता है, एवं इस अपराध के लिए उसे 6 महीने कड़ी सजा और ₹500 जुर्माना किया जाता है।'
फैसला सुनाते ही, न्यायाधीश श्री शिवशक्ति अपनी कुर्सी से उठे और पिता के समीप आकर उनके चरणों पर गिरकर,क्षमा याचना करते हुए, सुबक सुबक कर रोने लगे।पिता का हृदय भी भर आया, उनके नेत्रों से भी आंसू टपकने लगे। उपस्थित अनेक लोगों की आंखें भी गिली हो गई।इजलास बंद हो गया। न्यायाधीश महोदय अपने घर आ गए ,औरउन्होंने अपने पद से त्याग पत्र लिखकर फैसले के साथ ही महाराज के पास भेज दिया।
महाराज फैसले को पढ़कर मुग्ध हो गये ।उन्होंने कर्तव्य पारायण न्यायधीश शिवशक्ति जी को, उनकी कर्तव्य परायणता के लिए बधाई दी और उन्हें अपने पद पर बने रहने का आदेश दिया। अपने विशेषाधिकार से महाराज सज्जन सिंह ने,निर्दोष श्री श्री निवास जी को सजा से मुक्त कर दिया।
उज्जैन रियासत में महाराजा सज्जन सिंह का राज्य था। महाराजा बड़े ही न्याय प्रिय एवं प्रजा पालक थे। चारों और उनकी बड़ी ख्याति थी। रियासत के एक विशेष कार्यालय में,
श्री श्रीनिवास नाम के एक वरिष्ठ अधिकारी थे। यह कार्यालय वस्तुतः राज्य के विनिर्माण क्षेत्र का कार्य देखता था।श्री निवास जी बेहद आत्मीयता एवं सज्जनता से अपने कर्मचारियों से व्यवहार करते थे, और बेहद ही इमानदार भी थे। उनके कार्यालय के अफसर उनके इस ईमानदारी और सज्जनता का फायदा उठाते हुए, खर्च के झूठे कागजात तैयार कर धोखे से श्रीनिवास जी से हस्ताक्षर करवा लिए।श्री श्रीनिवास जी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर भरोसा करते थे,अतः उन्होंने खर्च के संबंध में पूछताछ नहीं की। सरकारी कोष एक बड़ी रकम उन बेईमान कर्मचारियों के हाथ आ गई। किंतु अपराध छिपा नहीं रहता। दूसरे विभाग के कुछ लोगों को इसका पता चल गया। उन्होंने महाराज से शिकायत कर दी।
महाराज भी श्री श्रीनिवास जी के इमानदारी से परिचित थे। मगर शासन की व्यवस्था बनाए रखने के लिए,उन्होंने जांच का आदेश दिया। जांच में श्री श्रीनिवास के हस्ताक्षर से ही रकम पास हुई थी अतएव वे ही मुख्य अपराधी ठहराए गए।
उस वक्त उज्जैन रियासत में न्यायाधीश के पद पर थे, श्री शिव शक्ति जी। वो श्री श्रीनिवास जी के ही पुत्र थे। और उन्हीं के भांति इमानदार और कर्तव्य परायण। न्यायाधीश श्री शिवशक्ति जी के समक्ष मुकदमा पेश हुआ। दोनों ओर से सबूत पेश किए गए। श्री श्रीनिवास जी ने मुलजिम के रूप में उपस्थित होकर ,बड़ीही धीरता से अपने बयान दिए।फैसले का दिन आया। राज्य के कर्मचारी और नागरिक बड़े ही कौतूहलता से देख रहे थे कि, अपने पिता के मामले में न्यायाधीश श्री शिवशक्ति जी क्या निर्णय लेते हैं ?आजउनके कर्तव्य परायणता की परीक्षा थी। योग्य पिता के योग्य पुत्र ने अपने पद की गरिमा और न्यायाधीश के कर्तव्य को ध्यान में रखते हुए निर्णय दिया-'मुलजिम के हस्ताक्षर के अनुसार,जिन्हें वह स्वयं भी स्वीकार करता है, उसे अपराधिक घोषित किया जाता है, एवं इस अपराध के लिए उसे 6 महीने कड़ी सजा और ₹500 जुर्माना किया जाता है।'
फैसला सुनाते ही, न्यायाधीश श्री शिवशक्ति अपनी कुर्सी से उठे और पिता के समीप आकर उनके चरणों पर गिरकर,क्षमा याचना करते हुए, सुबक सुबक कर रोने लगे।पिता का हृदय भी भर आया, उनके नेत्रों से भी आंसू टपकने लगे। उपस्थित अनेक लोगों की आंखें भी गिली हो गई।इजलास बंद हो गया। न्यायाधीश महोदय अपने घर आ गए ,औरउन्होंने अपने पद से त्याग पत्र लिखकर फैसले के साथ ही महाराज के पास भेज दिया।
महाराज फैसले को पढ़कर मुग्ध हो गये ।उन्होंने कर्तव्य पारायण न्यायधीश शिवशक्ति जी को, उनकी कर्तव्य परायणता के लिए बधाई दी और उन्हें अपने पद पर बने रहने का आदेश दिया। अपने विशेषाधिकार से महाराज सज्जन सिंह ने,निर्दोष श्री श्री निवास जी को सजा से मुक्त कर दिया।
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