Nice mythological story about ब्रह्म वैवर्त पुराण(देवी सीता और द्रौपदी के पूर्व जन्म की कथा)
Technical mythology
राजा कुशध्वज ने महालक्ष्मी की तपस्या करके पृथ्वी पति होने का वरदान प्राप्त किया। साथ ही महालक्ष्मी ने अपने अंश से उनके यहां जन्म लेने का भी वरदान उनको दिया। समय आने पर राजा कुशध्वज और उनकी पत्नी मालावतीके यहां,लक्ष्मी अपने एक अंश से,देवी वेदवती के रूप में जन्म ग्रहण किया। उस कन्या ने जन्म लेते ही,सूतिका गृह में वेद मंत्रों का उच्चारण किया था। इसलिए राजा ने उनका नाम वेदवती रखा। वेदवती ने भगवान नारायण को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए ,कठोरतप करना शुरू कर दिया। गंधमादन पर्वत पर चिरकाल तक तप करके,वह वहीं विश्वस्त हो रहने लगी। एक दिन दुरात्मा रावण वहां आया। वेदवती ने अतिथि धर्म के अनुसार उसका स्वागत सत्कार किया।
वह देवी परम सुंदरी थी। उन्हें देख कर रावण के मन में पाप आ गया और वो वेदवती को हाथ से पकड़ कर खींच लिया।उसकी कुचेष्टा को देखकर उस साध्वी का मन क्रोध से भर उठा। उसने रावण को अपने तपोबल से इस प्रकार स्तंभित कर दिया कि, वह अब हिल -डोल भी नहीं सकता था। अपनी ऐसी स्थिति हो जाने पर उसने मन ही मन उस देवी का मानस स्तवन किया । इस पर देवी ने उसे मुक्त कर दिया। लेकिन साथ ही उसने यह श्राप भी दिया कि -'दुरात्मा तू मेरे लिए ही अपने बंधु बांधव के साथ काल का ग्रास बनेगा। क्योंकि तूने काम भाव से मुझे स्पर्श कर लिया है। अतः अब मैं इस देह का त्याग करती हूं'। इतना कह कर उस देवी ने अपने योग द्वारा शरीर का त्याग कर दिया। रावण अपने इस कुकृत्य पर और उस देवी के देह त्याग को स्मरण करके बहुत विषाद करने लगा।
कालांतर में वही देवी,राजाजनक के यहां जन्म लिया और उनका नाम सीता पडा। और दिए हुए शाप के अनुसार वह रावण के विनाश का कारण बनी। जब राम अपने पिता के वचन की रक्षा के लिए सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ वन में पधारे। और जब सीता हरण का समय आया तो, अग्निदेव ने ब्राह्मण का वेश धारण कर कहा-:" भगवान मेरी प्रार्थना सुनिए !सीता के हरण का समय उपस्थित है। यह मेरी मां है और इन्हें मेरे संरक्षण में रखकर,आप छायामई सीता को अपने साथ रखिए। फिर मैंअग्नि परीक्षा के समय इन्हें मैं आपको लौटा दूंगा। इस तरह से परीक्षा लीला भी हो जाएगी ।इसी कार्य के लिए मुझे देवताओं ने यहां भेजा है ।मैं ब्राह्मणनहीं साक्षात् अग्नि हूं"।प्रभु श्रीराम ने अग्नि की बात सुनकर, लक्ष्मण को बताए बिना ही,अग्नि के प्रस्ताव को मान लिया।उन्होंने सीता को अग्नि के हाथों सौंप दिया। तब अग्नि ने योग बल से मायामयी सीता प्रकट की। उसके रूप और गुण साक्षात सीता के समान ही थे। अग्निदेव ने उसे श्रीराम को दे दिया। और सीता हरण के बाद। राम जी ने रावण को लंका जाकर उसे बंधुओं -बांधवों के साथ मारा डाला। तत्पश्चात उन्होंने सीता की अग्नि परीक्षा कराई। अग्निदेव ने उसी क्षण वास्तविक सीता को, प्रभु श्रीराम के सामने उपस्थित कर दिया।जब वास्तविक सीता आ गई ।तबउस छायामई सीता ने अत्यंत विनम्र होकर,अग्नि देव एवंभगवान श्रीराम दोनों से यह कहा कि:-" महानुभावों !मैं अब क्या करूं? कृपा कर यह बताये?तब भगवान श्री राम और अग्निदेव बोले-:"देवी!तुम तप करने के लिए पुण्य प्रक्षेत्र पुष्कर में चली जाओ,वहां रहकर तपस्या करो,इसके फलस्वरूप तुम्हें स्वर्ग लक्ष्मी बनने का शुभ अवसर प्राप्त होगा।
जब लंका में वास्तविक सीता श्री राम जी के पास विराजमान हो गई, तब उस छाया सीता की चिंता का पार न रहा।वह भगवान श्रीराम और अग्नि देव के आज्ञा अनुसार पुष्कर में भगवान शंकर की उपासना में तत्पर हो गई। पति प्राप्त करने के लिए व्यग्र होकर, वह बार-बार यही प्रार्थना कर रही थी कि-:"भगवान त्रिलोचन मुझे पति प्रदान कीजिए"। यही शब्द उसके मुख से 5 बार निकले। भगवान शंकर छाया सीता की प्रार्थना सुनकर बोले-:"देवी! तुम्हें पांच पति मिलेंगे। इस प्रकार त्रेता की जो छाया सीता थी, वही द्वापर में द्रोपदी बनी और शिव के वरदान के अनुसार पांचो पांडव उसके पति हुए।
राजा कुशध्वज ने महालक्ष्मी की तपस्या करके पृथ्वी पति होने का वरदान प्राप्त किया। साथ ही महालक्ष्मी ने अपने अंश से उनके यहां जन्म लेने का भी वरदान उनको दिया। समय आने पर राजा कुशध्वज और उनकी पत्नी मालावतीके यहां,लक्ष्मी अपने एक अंश से,देवी वेदवती के रूप में जन्म ग्रहण किया। उस कन्या ने जन्म लेते ही,सूतिका गृह में वेद मंत्रों का उच्चारण किया था। इसलिए राजा ने उनका नाम वेदवती रखा। वेदवती ने भगवान नारायण को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए ,कठोरतप करना शुरू कर दिया। गंधमादन पर्वत पर चिरकाल तक तप करके,वह वहीं विश्वस्त हो रहने लगी। एक दिन दुरात्मा रावण वहां आया। वेदवती ने अतिथि धर्म के अनुसार उसका स्वागत सत्कार किया।
वह देवी परम सुंदरी थी। उन्हें देख कर रावण के मन में पाप आ गया और वो वेदवती को हाथ से पकड़ कर खींच लिया।उसकी कुचेष्टा को देखकर उस साध्वी का मन क्रोध से भर उठा। उसने रावण को अपने तपोबल से इस प्रकार स्तंभित कर दिया कि, वह अब हिल -डोल भी नहीं सकता था। अपनी ऐसी स्थिति हो जाने पर उसने मन ही मन उस देवी का मानस स्तवन किया । इस पर देवी ने उसे मुक्त कर दिया। लेकिन साथ ही उसने यह श्राप भी दिया कि -'दुरात्मा तू मेरे लिए ही अपने बंधु बांधव के साथ काल का ग्रास बनेगा। क्योंकि तूने काम भाव से मुझे स्पर्श कर लिया है। अतः अब मैं इस देह का त्याग करती हूं'। इतना कह कर उस देवी ने अपने योग द्वारा शरीर का त्याग कर दिया। रावण अपने इस कुकृत्य पर और उस देवी के देह त्याग को स्मरण करके बहुत विषाद करने लगा।
कालांतर में वही देवी,राजाजनक के यहां जन्म लिया और उनका नाम सीता पडा। और दिए हुए शाप के अनुसार वह रावण के विनाश का कारण बनी। जब राम अपने पिता के वचन की रक्षा के लिए सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ वन में पधारे। और जब सीता हरण का समय आया तो, अग्निदेव ने ब्राह्मण का वेश धारण कर कहा-:" भगवान मेरी प्रार्थना सुनिए !सीता के हरण का समय उपस्थित है। यह मेरी मां है और इन्हें मेरे संरक्षण में रखकर,आप छायामई सीता को अपने साथ रखिए। फिर मैंअग्नि परीक्षा के समय इन्हें मैं आपको लौटा दूंगा। इस तरह से परीक्षा लीला भी हो जाएगी ।इसी कार्य के लिए मुझे देवताओं ने यहां भेजा है ।मैं ब्राह्मणनहीं साक्षात् अग्नि हूं"।प्रभु श्रीराम ने अग्नि की बात सुनकर, लक्ष्मण को बताए बिना ही,अग्नि के प्रस्ताव को मान लिया।उन्होंने सीता को अग्नि के हाथों सौंप दिया। तब अग्नि ने योग बल से मायामयी सीता प्रकट की। उसके रूप और गुण साक्षात सीता के समान ही थे। अग्निदेव ने उसे श्रीराम को दे दिया। और सीता हरण के बाद। राम जी ने रावण को लंका जाकर उसे बंधुओं -बांधवों के साथ मारा डाला। तत्पश्चात उन्होंने सीता की अग्नि परीक्षा कराई। अग्निदेव ने उसी क्षण वास्तविक सीता को, प्रभु श्रीराम के सामने उपस्थित कर दिया।जब वास्तविक सीता आ गई ।तबउस छायामई सीता ने अत्यंत विनम्र होकर,अग्नि देव एवंभगवान श्रीराम दोनों से यह कहा कि:-" महानुभावों !मैं अब क्या करूं? कृपा कर यह बताये?तब भगवान श्री राम और अग्निदेव बोले-:"देवी!तुम तप करने के लिए पुण्य प्रक्षेत्र पुष्कर में चली जाओ,वहां रहकर तपस्या करो,इसके फलस्वरूप तुम्हें स्वर्ग लक्ष्मी बनने का शुभ अवसर प्राप्त होगा।
जब लंका में वास्तविक सीता श्री राम जी के पास विराजमान हो गई, तब उस छाया सीता की चिंता का पार न रहा।वह भगवान श्रीराम और अग्नि देव के आज्ञा अनुसार पुष्कर में भगवान शंकर की उपासना में तत्पर हो गई। पति प्राप्त करने के लिए व्यग्र होकर, वह बार-बार यही प्रार्थना कर रही थी कि-:"भगवान त्रिलोचन मुझे पति प्रदान कीजिए"। यही शब्द उसके मुख से 5 बार निकले। भगवान शंकर छाया सीता की प्रार्थना सुनकर बोले-:"देवी! तुम्हें पांच पति मिलेंगे। इस प्रकार त्रेता की जो छाया सीता थी, वही द्वापर में द्रोपदी बनी और शिव के वरदान के अनुसार पांचो पांडव उसके पति हुए।
Hamare Ved shaastron mei aise kisi bachche ke janm ki baat nahi hai jo janm se mantr uchcharan kar sake bachche mantr uchcharan dhire dhire sikhaya jaata hai. Yeh matr ek dant kathaa hai aur kuchh nahi.
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