Nice mythological story about स्कंद पुराण:-वट सावित्री व्रत कथा।(भाग -०१)

Technical mythology
        In this block of mine you will get moral mythological and historical stories of the world. 
       Hello friends,
दोस्तों,मैं आज आपसे वट सावित्री व्रत की,कहानी शेयर करने जा रहा हूं। यह व्रत सुहागिन स्त्रियां जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या के दिन मध्यान्ह काल में वटवृक्ष के मूल में पूजा करके करती है। इस व्रत की दो कथाएं हैं। इन दो कथाओं में पहली कथा जो महा सती सावित्री से संबंधित है, वह मैं आपसे शेयर कर रहा हूं।
    "अमायांच तथा ज्येष्ठे वट भूले महासती।
                   त्रिरात्रोपोषिता नारी विधानेन प्रपछजयेत्।
 सावित्रीं  प्रतिमां कुय्यार्तत्सौवर्णा वापिस मृण्मयीम्।
संतधान्येन् संयुक्ता सावित्रीं प्रतिमां शुभाम्।
         ‌‌‌सार्दंध् सत्यवती साध्वीं फलनैवेद्ध दीपकै़।
सावित्र्याख्यानकंचापि वाचयित्वा द्विजौत्रमैरिति।।"

अर्थात्-ज्येष्ठ मास में,वटवृक्ष के मूल् में, सावित्री की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर,सात प्रकार के अन्न रखकर,उसका पूजन् फल नैवेद्ध ,धूप-दीप आदि से करें। योग्य ब्राह्मण से सती सावित्री की व्रत कथा का श्रवण करें ।यहव्रतअमावस्या(ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की) के दिन मध्यान्ह काल में वटवृक्ष के मूल  मेंकरनी चाहिए।
                         व्रत कथा
         सतयुग का समय था। उस वक्त मद्र राज्य में अश्वपति नाम के एक राजा थे। वे बड़े ही धर्मात्मा और पुण्यात्मा राजा थे। मगर उनको कोई संतान नहीं थी। अतः उन्होंने महर्षि भृगु के परामर्श से, देवी सावित्री के व्रत को किया। देवी सावित्री ने उन्हें दर्शन देकर, उनकोएकदिव्य पुत्री के पिता होने का वरदान दिया। वरदान के प्रभाव से उनको एक पुत्री हुई। क्योंकि उस कन्या का जन्म,देवी सावित्री के वरदान से हुआ था,अतः उन्होंने उस कन्या का नाम सावित्री रखा। वह कन्या धीरे-धीरे युवा अवस्था को प्राप्त हुई। राजा ने उनकी शादी के लिए स्वयंवर भी आयोजित किया। मगर सावित्री के रूप, गुण और तेज के कारण कोई भी राजकुमार उनका वरण नहीं कर पाया। अंत में राजा ने देवी सावित्री को ही अपने मंत्री के साथ, खुद ही,अपने योग्य वर ढूंढने के लिए, देशाटन पर भेज दिया। देशाटन से लौटने के पश्चात्, सावित्री ने, अपने पिता से कहाकि," पिताजी मैंने अपने योग्य एक वर ढूंढ लिया है। वह शाल्व देश के राजा द्ममत्सेन के पुत्र है। उनका नाम सत्यवान है। उनको शाल्व  देश के  ही सामंत रुक्मी ने वैर वश राज्य से निष्कासित कर, राज्य पर कब्जा कर लिया है। अतः अपने पुत्र और पत्नी के साथ अब वह महात्मा वन में ही रहते हैं। दुर्भाग्य से वह अंधे हो चुके हैं।उनका पुत्र हमेशा सत्य बोलता है इसलिए उसका नाम सत्यवान रखा गया है। पिताजी मुझे वही लड़का पसंद आया है। अतः मैं अब उसी से ही विवाह करूंगी"।राजा अश्वपति भी अपनी पुत्री की प्रसन्नता के लिए शादी हेतु तैयार हो गए। तभी वहां देवर्षि नारद पधारे। राजा ने देवर्षि को भी यह शुभ समाचार सुनाया। समाचार सुन के नारद मुनि ने राजा को कहा कि -"महाराज यह आपने क्या किया?सत्यवान की आयु मात्र 1 वर्ष की ही शेष है।" इस पर अश्वपति बड़े ही चिंतित हो गए उन्होंने सावित्री को भी अपने विचार बदलने हेतु कहा। is per savitri ne उत्तर दिया-: "नहीं पिताजी!मैंने मन से उन्हें वरण कर लिया है, अतः उनकी आयु भले ही 1 वर्ष तक ही क्यों ना हो,मैं विवाह उन्हीं से करूंगी।" सावित्री के प्रण से राजा भी विवश हो गए, और उन्होंने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया। विवाह के पश्चात् सावित्री- सत्यवान के साथ  जंगल में ही रहने लगी। वह अपने सास-ससुर सब की सेवा करती।
        देवर्षि नारद के कथन अनुसार सावित्री ने सत्यवान के मृत्यु से 4 दिन पूर्वयह सोचकर व्रत करना शुरू कर दिया,कि आज से ठीक चौथे दिन ,मेरेपति के मृत्यु होगी । वह तीन रात्रि निराहार रहकर व्रत करने लगी। आखिरकार वह दिन आ ही गया,जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होने कोथी। उस दिन नित्य की भांति,सत्यवान जंगल से लकड़ियां काटने जाने लगा। इस बार सावित्री ने भी उनके साथ जाने की जिद की। सत्यवान भी उनको लेकर लकड़ी काटने हेतु जंगल को गए। तभी सर में तेज दर्द से वह बेचैन हो उठे और उन्होंने सावित्री को कहा कि तुम मुझे अपने गोद में सोने दो। मेरा सर बहुत दर्द कर रहा है।मैंथोड़ा आराम करूंगा। तभी सत्यवान की मृत्यु हो गई। उसके प्राण को लेने यमदूत आप पहुंचे। मगर किसी की भी हिम्मत सावित्री से उसके पति के प्राण लेने की नहीं हुई। अंत में खुद यमराज वहां पहुंच गए। उनकी भी हिम्मत नहीं हुई कि सावित्री से सत्यवान के प्राण छीन ले जाएं। उन्होंने सावित्री को ही समझा कर कहा कि ,-"पुत्रीतुम्हारे पति के प्राण शेष हो चुके हैं,उन्हें छोड़ दो मैं उन्हें लेने आया हूं।" इस पर सावित्री ने सत्यवान के मृत शरीर को अपने गोद से नीचे रख दिया। यमराज सत्यवान के प्राण लेकर, यमपुरी के रास्ते निकल लिए।लेकिन कुछ दूर आगे जाने पर उन्होंने देखा कि, सावित्री भी उनके पीछे पीछे चल रही है। यह देखकर यमराज चकित हुए और उन्होंने कहा कि-:"पुत्री तुम यहां से लौट जाओ।यमपुरी में कोई जीवित प्राणी नहीं जा सकता।" सावित्री ने कहा -:"स्त्री के लिए उसके पति की गति ही उसकी गति है। अतः मैं अपने पति के पथ पर ही जा रही हूं"।इस पर यमराज ने उन्हें कहा कि:-" पुत्री!यहां से तुमलौट जाओ"।मगर सावित्री नहीं लौटी,वह उनके पीछे पूर्ववत चलती रही । यमराज ने उसको कहा कि,-"पति के प्रति प्रेम को देखकर,मैं तुमको तीन वरदान दे रहा हूं।यह तीन वरदान लेकर तुम वापस लौट जाओ" । इस पर सावित्री ने उनसे पहला वर मांगा कि, "मेरेससुरकी आंखें ठीकहो जाएं और उन्हें उनका राज पुनः प्राप्त हो जाए। दूसरे वर में उसने अपने पिता के लिए सौ पुत्रों का वरदान मांगा। तीसरे वर में अपने लिए भी सौपुत्रो का वरदान मांगा।"यमराज ने तथास्तु कह के, वहां से विदा लिया। वह सत्यवान के प्राण को लेकर आगे बढ़ गए। तभी उन्होंने पुनः पीछे देखा और उन्होंने पाया कि सावित्री अभी भी पीछे-पीछे आ रही है। यह देखकर यमराज कुपित होकर बोले-" वरदान प्राप्त करने के बाद भी तुम नहीं लौटी अब मैं तुम्हें शाप दूंगा।" सावित्री ने आश्चर्य से पूछा:-" कैसा शाप ?आपने तो मुझे सौ पुत्रों की माता होने का वरदान दिया है। और मेरे पति को आप लेते जा रहे हो,ऐसे में मैं सौ पुत्रों की माता कैसे बनूगी?" सावित्री के इस बात को सुनकर यमराज का सर चकराया, क्योंकि उन्होंने सावित्री को सौ पुत्रों की माता होने का वर दिया था। अंत में हार कर यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े।
         इस  तरह से इस MORAL mythological,& historical story ke इस अंक में कैसे सावित्री ने अपने संकल्प शक्ति से ् ना सिर्फ अपना,बल्कि अपने माता-पिता और अपने ससुर का भी, आखे ,राज्यसभी वापसप्राप्त कर लिया। रुक्मि ने,जिसने उनके ससुर को राज्य से निष्कासित कर दिया था ,खुदउनके ससुर को उनका राज वापस लौटा दिया।
धन्यवाद।
अगले अंक में में वट सावित्री व्रत के कथा अंतर्गत दूसरी कहानी को आपसे शेयर करूंगा। वट सावित्री व्रत में एक दूसरी कहानी भी कही जाती है विशेषकर मिथिलांचल में।




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