Nice Moral story( नास्ति सत्यात्परो धर्म ःः)
Technical mythology
Hi dosto Mai moral mythological historical stories ke is aank me aapko सत्य जो सभी वर्णों में विकार रहित है, से संबंधित कहानी को शेयर कर रहा हूं। यह एक सत्य घटना है, जो राजस्थान के जयपुर के करीब आजादी से पूर्व घटा था।
राजस्थान के जयपुर शहर के पास, घोड़ी नामक एक गांव है। उस गांव में घाटम नाम का एक मीणा जनजाति का व्यक्ति रहता था। उसके पुरखे चोरी से ही अपना भरण-पोषण करते थे। अतः घटम भी इसी धंधे में उतर गया ।वहभी चोरी करके ही अपना जीवन व्यतीत करने लगा। एक दिन उसने एक महात्मा का प्रवचन सुना। प्रवचन सुनकर वह उस महान आत्मा को मन ही मन प्रणाम किया। और उनका शिष्य बनने का प्रण कर लिया। ऐसा प्रण करके, वह उन महात्मा के पास गया। और खुद को अपना शिष्य बनाने का आग्रह किया।महात्मा ने बड़े स्नेह से उसे कहा,:--"बेटा घाटम! तू चोरी छोड़ दे।" इसपर घाटम ने कहा, :--" मैं अगर चोरी दूंगा तो, अपने परिवार का पालन कैसे करूंगा। मेरी तो आजीविका ही चोरी है। आप अन्य कोई भी आज्ञा गया दे,तो मैं उसे पालन करने को तैयार हूं"। इसपर महात्मा ने कहा,:--"अच्छा! कोई बात नहीं, तू अगर चोरी नहीं छोड़ सकता तो, मैं तुझे 4 नियम बताता हूं। अगर तू उसका पालन करेगा,तो मैं तुझे अपना शिष्य जरूर बना लूंगा।" महात्मा जी ने कहा:--" पहला नियम- सदा सत्य बोलोगे, दूसरा नियम- -साधु संतों की सेवा करोगे। तीसरा नियम --प्रत्येक खाद्य पदार्थ भगवान को अर्पण करके ही खाओगे, चौथा --भगवान की आरती मैं जरूर जाओगे"।सरल हृदय घाटम ने इन चार नियमों के पालन करने का संकल्प लिया,और महात्माजी का शिष्य बन गया। इस तरह महात्मा जी ने, चोर को भी, प्रभु के समीप होने का मंगलमय मार्ग दिखा दिया। एक दिन वह महात्मा दूर के किसी गांव में गए। वहां उनके शिष्यों ने, भगवान का कोई उत्सव रखा था। इस पर उन महात्मा ने, वहां पर घाटम को भी बुलावा भेजा। स्थान बहुत दूर था, और समय बहुत कम। इसीलिए घाटम ने सोचा कि ,गुरुकी आज्ञा है, भगवान के उत्सव पर मुझे समय से पहुंचना है।अगर नहीं पहुंच पाउंगा तो साधु सेवा का जो व्रत मैंने लिया है,वह भंग हो जाएगा। और यह बड़ा अपराध हो जाएगा। अब घाटम की चौर्य वृत्ति जगी।उसने सोचा, यदि मैं भगवान के उत्सव पर समय पर न पहुंचा, और गुरु जी की सेवा नहीं की, तो साधु सेवा का व्रत भंग हो जाएगा। इस से अच्छा है कि ,राजाके घुड़साल से एक घोड़ा ले लिया जाए,तो जल्दी पहुंचा जा सकता है। बस सुबह सीधा घुड़साल पहुंचा और अंदर घुसने लगा। अनजान को बेधड़क अंदर घुसते देखकर पहरेदारों ने पूछा तुम कौन हो?घाटम तो सत्य बोलने की प्रतिज्ञा कर चुका था,गुरुजी के सामने। अतः उसने सच बोला कि मैं चोर हूं और राजा के घुड़साल से घोड़ा चुराने आया हूं।पहरेदार उस पर हंसने लगे और सोचने लगे जरूर यह कोई पागल है और वह उसको, अनदेखा कर के चले गए। घाटम ने झट से एक बढ़िया सा घोड़ा चुना,और उसे लेकर चल दिया।रास्ते में संध्या हो गई। एक मंदिर में आरती हो रही थी। गुरु की आज्ञा अनुसार घाटम वहां ठहर गया,और आरती में शामिल हुआ। इधर जब सचमुच घोड़ा चोरी होने की बात , सिपाहियों को पता चली। तो वह, घोड़े के पद चिन्हों को ढूंढते- ढूंढते वहां पहुंच गए, जहां घोड़ा बंधा था। जाकर देखा,घाटम मतवाला होकर आरती में झूम रहा है।पर आश्चर्य,काले रंग के स्थान पर सफेद रंग का 🏇 घोड़ा बंधा है।जो ईश्वर, सारे संसार को बंधनों से मुक्त करते हैं।उनका यह सत्यवादी भक्त, राजा के बंधन में कैसे आ सकता था? फिर घोड़े के रंग में इतना सा अंतर कर देना, उस भगवान की अघटनघटनापटीयसी शक्ति के लिए कौन सी बड़ी बात है? आरती समाप्त होने पर,प्रेमी भक्त घाटन झूमता हुआ, बाहर आया और घोड़े पर जा बैठा।सिपाहियों को बड़ा आश्चर्य हुआ वही व्यक्ति, वही सब कुछ, लेकिन घोड़े का रंग दूसरा कैसे? एक ने घाटम से पूछा :--"बताओ! राजा का घोड़ा किस चोर ने चुराया है?"घाटम ने समझा कर कहा,:-" भाई !मैंवही चोर हूं।यह घोड़ा भी वही काले रंग वाला ही है।दूसरा रंग तो,तुम देख रहे हो वह तो उस भगवान की माया है।गुरु जी के यहां महोत्सव में मुझे पहुंचना है,तुम चाहो, तो मेरे साथ चल सकते हो। वहां से लौटकर,मैं तुम लोगों के साथ, खुद राजा के पास चलूंगा"" । सिपाहियों ने उसकी बात मान ली और उसके साथ गुरुजी के महोत्सव में पहुंच गए।गुरुजी के महोत्सव से लौटकर,घाटम उन सिपाहियों के साथ, राजा के पास गया और राजा के पूछने पर,घाटम ने स्वयं, सारी घटना को विस्तार से कह सुनाया। सिपाहियों ने भी उसकी बात की पुष्टि की।राजा घाटम की भक्ति और उसकी सत्य निष्ठा से चकित हो गया, और उसने सत्यनिष्ठ घाटम के चरणों में प्रणाम किया। राजा ने उसको बहुत सा धन देना चाहा, पर घाटम ने सर्वथा इनकार कर दिया।राजा के बहुत आग्रह करने, पर समय-समय पर गुरु जी की सेवा में जाने के लिए केवल, एक घोड़ा भर स्वीकार किया।और गुरु के बताए सत्य पथ पर चलकर,वह संसार से मुक्त हो गया।
इस तरह से, Moral mythological and historical stories ke is aank हम देखते हैं कि, सत्य ने कैसे, आजीवन चोरी डकैती जैसे घृणित कर्म करने वाले,घाटम को भी प्रभु के त्रिविधतापविनाशी श्री चरणों में, स्थान दिला दिया। इसीलिए तो कहा गया है:--" नास्ति सत्यात्परो धर्म ःः"।
Hi dosto Mai moral mythological historical stories ke is aank me aapko सत्य जो सभी वर्णों में विकार रहित है, से संबंधित कहानी को शेयर कर रहा हूं। यह एक सत्य घटना है, जो राजस्थान के जयपुर के करीब आजादी से पूर्व घटा था।
राजस्थान के जयपुर शहर के पास, घोड़ी नामक एक गांव है। उस गांव में घाटम नाम का एक मीणा जनजाति का व्यक्ति रहता था। उसके पुरखे चोरी से ही अपना भरण-पोषण करते थे। अतः घटम भी इसी धंधे में उतर गया ।वहभी चोरी करके ही अपना जीवन व्यतीत करने लगा। एक दिन उसने एक महात्मा का प्रवचन सुना। प्रवचन सुनकर वह उस महान आत्मा को मन ही मन प्रणाम किया। और उनका शिष्य बनने का प्रण कर लिया। ऐसा प्रण करके, वह उन महात्मा के पास गया। और खुद को अपना शिष्य बनाने का आग्रह किया।महात्मा ने बड़े स्नेह से उसे कहा,:--"बेटा घाटम! तू चोरी छोड़ दे।" इसपर घाटम ने कहा, :--" मैं अगर चोरी दूंगा तो, अपने परिवार का पालन कैसे करूंगा। मेरी तो आजीविका ही चोरी है। आप अन्य कोई भी आज्ञा गया दे,तो मैं उसे पालन करने को तैयार हूं"। इसपर महात्मा ने कहा,:--"अच्छा! कोई बात नहीं, तू अगर चोरी नहीं छोड़ सकता तो, मैं तुझे 4 नियम बताता हूं। अगर तू उसका पालन करेगा,तो मैं तुझे अपना शिष्य जरूर बना लूंगा।" महात्मा जी ने कहा:--" पहला नियम- सदा सत्य बोलोगे, दूसरा नियम- -साधु संतों की सेवा करोगे। तीसरा नियम --प्रत्येक खाद्य पदार्थ भगवान को अर्पण करके ही खाओगे, चौथा --भगवान की आरती मैं जरूर जाओगे"।सरल हृदय घाटम ने इन चार नियमों के पालन करने का संकल्प लिया,और महात्माजी का शिष्य बन गया। इस तरह महात्मा जी ने, चोर को भी, प्रभु के समीप होने का मंगलमय मार्ग दिखा दिया। एक दिन वह महात्मा दूर के किसी गांव में गए। वहां उनके शिष्यों ने, भगवान का कोई उत्सव रखा था। इस पर उन महात्मा ने, वहां पर घाटम को भी बुलावा भेजा। स्थान बहुत दूर था, और समय बहुत कम। इसीलिए घाटम ने सोचा कि ,गुरुकी आज्ञा है, भगवान के उत्सव पर मुझे समय से पहुंचना है।अगर नहीं पहुंच पाउंगा तो साधु सेवा का जो व्रत मैंने लिया है,वह भंग हो जाएगा। और यह बड़ा अपराध हो जाएगा। अब घाटम की चौर्य वृत्ति जगी।उसने सोचा, यदि मैं भगवान के उत्सव पर समय पर न पहुंचा, और गुरु जी की सेवा नहीं की, तो साधु सेवा का व्रत भंग हो जाएगा। इस से अच्छा है कि ,राजाके घुड़साल से एक घोड़ा ले लिया जाए,तो जल्दी पहुंचा जा सकता है। बस सुबह सीधा घुड़साल पहुंचा और अंदर घुसने लगा। अनजान को बेधड़क अंदर घुसते देखकर पहरेदारों ने पूछा तुम कौन हो?घाटम तो सत्य बोलने की प्रतिज्ञा कर चुका था,गुरुजी के सामने। अतः उसने सच बोला कि मैं चोर हूं और राजा के घुड़साल से घोड़ा चुराने आया हूं।पहरेदार उस पर हंसने लगे और सोचने लगे जरूर यह कोई पागल है और वह उसको, अनदेखा कर के चले गए। घाटम ने झट से एक बढ़िया सा घोड़ा चुना,और उसे लेकर चल दिया।रास्ते में संध्या हो गई। एक मंदिर में आरती हो रही थी। गुरु की आज्ञा अनुसार घाटम वहां ठहर गया,और आरती में शामिल हुआ। इधर जब सचमुच घोड़ा चोरी होने की बात , सिपाहियों को पता चली। तो वह, घोड़े के पद चिन्हों को ढूंढते- ढूंढते वहां पहुंच गए, जहां घोड़ा बंधा था। जाकर देखा,घाटम मतवाला होकर आरती में झूम रहा है।पर आश्चर्य,काले रंग के स्थान पर सफेद रंग का 🏇 घोड़ा बंधा है।जो ईश्वर, सारे संसार को बंधनों से मुक्त करते हैं।उनका यह सत्यवादी भक्त, राजा के बंधन में कैसे आ सकता था? फिर घोड़े के रंग में इतना सा अंतर कर देना, उस भगवान की अघटनघटनापटीयसी शक्ति के लिए कौन सी बड़ी बात है? आरती समाप्त होने पर,प्रेमी भक्त घाटन झूमता हुआ, बाहर आया और घोड़े पर जा बैठा।सिपाहियों को बड़ा आश्चर्य हुआ वही व्यक्ति, वही सब कुछ, लेकिन घोड़े का रंग दूसरा कैसे? एक ने घाटम से पूछा :--"बताओ! राजा का घोड़ा किस चोर ने चुराया है?"घाटम ने समझा कर कहा,:-" भाई !मैंवही चोर हूं।यह घोड़ा भी वही काले रंग वाला ही है।दूसरा रंग तो,तुम देख रहे हो वह तो उस भगवान की माया है।गुरु जी के यहां महोत्सव में मुझे पहुंचना है,तुम चाहो, तो मेरे साथ चल सकते हो। वहां से लौटकर,मैं तुम लोगों के साथ, खुद राजा के पास चलूंगा"" । सिपाहियों ने उसकी बात मान ली और उसके साथ गुरुजी के महोत्सव में पहुंच गए।गुरुजी के महोत्सव से लौटकर,घाटम उन सिपाहियों के साथ, राजा के पास गया और राजा के पूछने पर,घाटम ने स्वयं, सारी घटना को विस्तार से कह सुनाया। सिपाहियों ने भी उसकी बात की पुष्टि की।राजा घाटम की भक्ति और उसकी सत्य निष्ठा से चकित हो गया, और उसने सत्यनिष्ठ घाटम के चरणों में प्रणाम किया। राजा ने उसको बहुत सा धन देना चाहा, पर घाटम ने सर्वथा इनकार कर दिया।राजा के बहुत आग्रह करने, पर समय-समय पर गुरु जी की सेवा में जाने के लिए केवल, एक घोड़ा भर स्वीकार किया।और गुरु के बताए सत्य पथ पर चलकर,वह संसार से मुक्त हो गया।
इस तरह से, Moral mythological and historical stories ke is aank हम देखते हैं कि, सत्य ने कैसे, आजीवन चोरी डकैती जैसे घृणित कर्म करने वाले,घाटम को भी प्रभु के त्रिविधतापविनाशी श्री चरणों में, स्थान दिला दिया। इसीलिए तो कहा गया है:--" नास्ति सत्यात्परो धर्म ःः"।
Comments
Post a Comment
Okay