Nice mythological story about (वट सावित्री व्रत कथा भाग ०२- नाग नागिन की कहानी)
Technical mythology
Well come back friends, today moral mythological and historical stories ke is aank me I told you a very nice mythological story about ( वट सावित्री व्रत कथा भाग०२-:-नागिन की कहानी)-
दोस्तों यह कथा आमतौर पर लोग नहीं जानते हैं। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि ,वट-सावित्री के अंतर्गत सिर्फ सावित्री और सत्यवान की कहानी ही सुहागिन स्त्रियां,व्रत के समय सुनती व पढ़ती है । मगर हकीकत यह है कि, सावित्री -सत्यवान के कथा के अलावे पूर्वांचल क्षेत्र में, विशेषकर मिथिला में, सावित्री-सत्यवान के साथ-साथ,नाग नागिन की कहानी भी स्त्रियां व्रत करते समय सुनती हैं।
दोस्तों! मैं आज आपको इसी दुर्लभ कहानी को, आपसे शेयर करने जा रहा हूं।
यह कहानीमिथिला प्रदेश की है जहां एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण श्रीकाशीनाथ झा अपनी पत्नी माया देवी के साथ रहते थे।पंडित श्री काशीनाथ झांकी पूरे इलाके में अपनी विद्वता के कारण चर्चा होती थी। वह बहुत बड़े ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता थे। उनकी पत्नी भी बेहद साध्वी थी। उनकी पत्नी रोज अपने हाथ से खाना बनाती थी। जब वह चावल पकाते थी ,तो चावल का जो माड़ निकलता था, उस माड़ कोअनजाने में, एक झोझड़ में फेंक देती थी। उस झोझड़ में एक नाग -नागिन का बसेरा था। पंडिताइन चावल का माड़ जो फेंकती थी, उसके गर्मी से नाग नागिन तो बच गए थे,लेकिन उनकीसंतान उस गर्मी को झेल नहीं पाए और मारे गए।नागिन बड़ी दुखी हुई और अपनी संतान की मौत का बदला लेने के लिए, अपने पति को प्रेरित किया। नाग और नागिन वहां से हटकर दूर जंगल में जाकर बस गए। मगर, उन्होंने प्रतिज्ञा कर लिया कि,अपने संतानों की मौत का बदला, वह काशीनाथ झा से जरूर लेंगे । जिस तरह से पंडिताइन के कारण वह निसंतान हो गए वैसे ही पंडित जी के भी सभी बच्चों को वह मारके रहेंगे। वह पंडित जी के भी वंश को नहीं चलने देंगे।पंडित जी के घर में घुसकर वह उनकी संतान को नुकसान तो नहीं पहुंचा सकते थे, क्योंकि पंडित जी ने उसे अपने मंत्र से कील कर रखा था। अतः नाग और नागिन उनके घर में घुसकर किसी भी इंसान को डस नहीं सकते थे। नाग और नागिन अपने संतान की मौत का बदला लेने के लिए घात लगाए रहते थे। एक दिन उनको इसका मौका मिल गया। पंडित जी की बड़े लड़के की धूमधाम से शादी हो रही थी। शादी के बाद पंडित जी का लड़का दुल्हन के साथ लौट रहा था। लौटने के क्रम में वह,एक वटवृक्ष के बगल में बने सराय में विश्राम कर रहा था। तभी वह विषैला नाग अपने पूर्व काल के वैरका स्मरण करके वहां आया, और उनके लड़के को डस लिया। वह नाक बड़ा ही भयंकर विषधारी था उसके विष के प्रभाव से आदमी तो क्या पेड़-पौधे भी जल कर राख हो जाते थे । कहते हैं कि नाग के डसते ही उसके विष के प्रभाव से पंडित जी के लड़के की सिर्फ राख बची।पंडित जी के घर में कोहराम मच गया।नई बहू आई और विधवा हो गई। पंडित जी ने अपने लड़के की राख को संभाल कर रख लिया। इसके बाद उन्होंने अपने दूसरे लड़के की भी शादी की, मगर इस बार भी वही हुआ, उस विषधर नाग ने पुनः उनके लड़के को डसा और वह लड़का भी विष से जल गया । इस तरह से पंडित जी के सात में से छः लड़के मारे गए।पंडित जी ने अपने सभी लड़कों के राख को संभाल कर रख दिया और उन्होंने यह पता लगाने का प्रयास किया, कि ऐसा क्यों हुआ? क्योंवह नाग मेरे बच्चे को डस रहा है? यह सवाल बार-बार उनके मन में उठ रहा था। उन्होंने अपने गुरु से इस बात की चर्चा की। गुरु जी ने ध्यान लगा कर पता लगा लिया और उन्हें बताया कि तुम्हारी पत्नी चावल का माड़, जिस झोझड़में फैकती थी, उसी झोझड़ में एक नाग-नागिन का जोड़ा रहता था।तुम्हारी पत्नी के द्वारा जो माड़ फेंका गया, उससे उसके बच्चे मारे गए ।वह नाग तुम से उसी का बदला ले रहा है।वहनाग बेहद जहरीला है।वह अपने विष से पेड़ को भी डस ले, तो पेड़ भी राख हो जाए। अतः अब तुम्हारे आखरी बच्चे की भी जान खतरे में है। पंडित जी यह सब जानकर डर गए। वह अक्सर अपने बच्चे के रक्षा का उपाय सोचते रहते थे। उनका अब एक ही संतान बचा था, जिसका नाम उन्होंने भोले नाथ रखा था। वह लड़का अपने नाम के अनुरूप ही सरल, निश्छल था।धीरे-धीरे वह लड़का बड़ा होने लगा। उसकी भी उम्र शादी की हो गई। उसकी भी शादी के रिश्ते आने लगे। मगर पंडित जी को अपने गुरु की बात याद आती थी। और वह रिश्ता टाल जाते थे। वह जानते थे कि ,मेरेइस पुत्र की भी जान खतरे में है। वह नाग शादी वाले दिन इसको भी नहीं छोड़ेगा। अतः उन्होंने फैसला किया कि, अपने पुत्र की शादी वह ऐसे गुणी, लड़की से करेंगे, जो उसे इस खतरे से बचा ले। और ऐसी लड़की की तलाश वह खुद करेंगे। ऐसे ही गुणी लड़की की तलाश में पंडित जी एक दिन नदी पार करके ,दूसरेगांव में गए। वहां उन्होंने लड़कियों का एक झुंड देखा जो आपस में हंसी मजाक करते हुए जा रही थी। पंडित जी तो ज्योतिष के जानकार थे। वह किसी के ललाट को देखकर उसका चरित्र एवं गुण जान लेते थे। अतः उन्होंने लड़कियों में से एक लड़की जिसका नाम शांता था, को देखा तो उन्हेंऐसा लगा कि,यह लड़की ही उनके पुत्र के लिए सही है, फिर भी उन्होंने परीक्षा लेना चाही। और वह लड़कियों के उस समूह के पीछे नंगे पांव जूता उतारकर चलने लगे। एकाएक नदी आया। नदी में पानी कम था, इस कारण लड़कियों का वह झुंड नदी को बिना ⛵ नाव के ही पार करने लगा। पंडित जी भी नदी पार करने लगे,लेकिन नदी पार करते समय उन्होंने जूता पहन लिया।इस पर सभी लड़कियां कहने लगी:-" कैसा पागल है यह?इतनी गर्मी में जूता उतारकर चल रहा था, और जब पानी में चल रहा है तो, जूता पहन लिया"। सभी उनका मजाक उड़ाने लगी। मगर वह लड़की, जिसे पंडित जी ने मन ही मन अपने पुत्र के लिए चुन लिया था, वह बोली कि,-:" नहीं!यहबेहद विद्वान व्यक्ति हैं अरे!नंगी आंखों से हम सड़क पर कील , कांटे आदिसब देख कर चल सकते हैं, मगर पानी में कहां कील है,कहां काटा है यह हम नहीं देख सकते,अब इन्होंने पानी में जूता पहन लिया है, अब इन्हें को पानी में कांटे,पत्थर, कंकड़ और कील किसी का भी डर नहीं रहा। यह बहुत ही विद्वान व्यक्ति मुझे लगते हैं। उसकी बात को सुनकर पंडित जी बेहद ही प्रभावित हुए, उन्हें लगा कि वह सही दिशा में जा रहे हैं। मगर उन्होंने और परीक्षा लेनी चाही। पानी से निकलने के बाद,वह आगे बढ़ने लगे। आगे बढ़ते हुए वह छाता को बंद कर लड़कियों के साथ ही चलने लगे। फिर थक कर जब, सारी लड़कियां एक पेड़ के नीचे बैठ गई, तो पंडित जी भी उस पेड़ के नीचे जाकर अलग में बैठ गए, और बैठने के बाद, उन्होंने छाता लगा लिया।इस पर सारी लड़कियां कहने लगी,:-" देखो! तुम कहती थी ना, यह विद्वान आदमी है, अरे!यह तो निरा मूर्ख है। देखो तो इतनी गर्मी में छाता हटा कर चल रहा था। अब पेड़की छांव में बैठा है, तो छाता लगा लिया"। इस पर वह लड़की बोली,-:" नहीं! यह सचमुच बहुत विद्वान आदमी लगते हैं। इसपेड़ के ऊपर कई सारे पशु पक्षियों का बसेरा है।अब पेड़ के नीचे बिना छाता लगाए,अगर यह बैठेंगे, तो पक्षी ऊपर से बीट कर सकती है। जिससे इन्हें नहाना पड़ सकता है,अब इन्होंने छाता लगा लिया,अब इन पर पक्षी बीट भी करेंगे, तो यह सुरक्षित रहेंगे। यह सचमुच बहुत विद्वान आदमी है"। ऐसा कहकर वह लड़की उनके पास आई,और उनको प्रणाम करके बोली," हे सज्जन! आप कौन हैं? और कहां से आए हैं"? उन्होंने जवाब दिया:-" पुत्री!मैं तुम्हारे ही पिता से मिलने आया हूं। और तुम्हारे ही घर जा रहा हूं, मुझे अपने घर ले चलो। इस पर उस लड़की ने कहा कि,:-" आप ब्राम्हण है! आप मेरे घर चलेंगे,मैं एक धोबी की पुत्री हूं"। इसउस ब्राम्हण देव ने कहा कि,:-" हां! मैं तुम्हारे ही घर आया हूं', मुझे तुम्हारे पिता से बात करनी है, मुझे अपने घर ले चलो"। उस लड़की के पिता उस समय घर में नहीं थे। अतः उस लड़की ने उन्हें अपने घर बैठने का आसन दिया, और जलपान निवेदित किया।मगर पंडित जी ने कहा कि,:-"जबतक तुम्हारे पिता से बात नहीं होगी, और वह मेरे बात को नहीं मानेंगे,तब तक मैं अंन्न-जल कुछ नहीं ग्रहण करूंगा"। कुछ देर के बाद लड़की के पिता आ गए उन्होंने पंडित जी को पहचान लिया और उनकी खूब आवभगत की। उन्हें जलपान करने हेतु दिया।पंडित जी ने कहा कि," मैं जिस कार्य से आपके यहां आया हूं, वह पूरा होगा ,तभी आपका अन्न जल ग्रहण करूंगा"। उसके बाद उन्होंने कहा कि," मैं आपकी पुत्री का विवाह अपने पुत्र से करना चाहता हूं"। इस पर धोबी ने कहा कि,-:" मैं नीची जाति का हूं। आपके जाति में कैसे शादी हो सकती है"?इस पर पंडित जी ने कहा,कि "मैं जाति धर्म के इन बंधनों को नहीं मानता। मैं मानता हूं कि, लड़की अगर गुनी हो तो, किसी भी जाति की हो, बहू बनाया जा सकता है।अतः मैं अपने पुत्र के लिए आपके पुत्री का हाथ मांगता हूं"। धोबी ने हां कह दी।पंडित जी ने शुभ मुहूर्त में दोनों की शादी कर दी।विदाई के पूर्व, पंडित जी ने अपनी बहू से भेंट की और उसे नाग नागिन के बदले वाली बात को बता दिया,और उन्होंने कहा कि,"इस बार इस अनहोनी को तुम ही अपने सतीत्व के बल पर रोक सकती हो" । इसके बाद इधर लड़की के विदाई की तैयारी शुरू हो गई। लड़की ने अपनी मां से कहा कि,:-" विदाई वाले दिन वह वट सावित्री का व्रत करेगी। अतः वह उसके लिए एक झबही(मिट्टी का बना हुआ छोटा सा पात्र) में दूध-लावा, और उड़द का बड़ा रख देना"। लड़की के विदाई के दिन ही जेष्ठ अमावस्या पर रहा था। अतः इस के ०3 दिन पूर्व से ही उस लड़की ने व्रत रखना शुरू कर दिया। और विदाई के दिन उसने पूर्णतया उपवास रखा। दूध,लावा और बड़ा लेकर ही वह अपनी डोली में बैठी। बारात दूल्हा और दुल्हन को लेकर फिर उसी नदी के किनारे स्थित वटवृक्ष के नीचे विश्राम हेतु रुकी। वट वृक्ष के नीचे विश्राम हेतु रुकते ही, लड़की ने सर्वप्रथम उतर कर (बारातियों के विश्राम करने जाने के बाद), वट वृक्ष की जड़ में सत्यवान और सावित्री की पूजा-अर्चना की। पूजा के बाद वह अपने पति के पास पहुंची, जो उस वक्त सो रहा था। और वह उस का सरअपने गोद में रख ली। उसी वक्त नाग उसके पति को डसने हेतु वहांआ पहुंचा। और जैसे ही उस नाग ने उसके पति को डसने का प्रयास किया, उस लड़की ने व्रत के प्रभाव से अर्जित बल से, उस नाग को फन सहित पकड़ लिया, और उसका मुंह झबही (मिट्टीके छोटे से बर्तन )में डूबा दिया, एवं उसके धर को जांघों तले दबा दिया। नाग अब न तो हिल सकता था,ना डोल सकता था, वह झबही ही में मुंह से दूध और लावा खाने लगा।उसमें इतनी हिम्मत ही नहीं बची थी,कि उस लड़की को डंसने सके। उस लड़की के सामने उसकी सारी ताकत,सारी कोशिश, बेकार जा रही थी। उधर नागिन परेशान थी कि, उसका पति अब तक उस लड़के को डस के क्यों नहीं लौटा? वह खुद इस बात का पता करने वहां आप करने आई । शतभिषा नक्षत्र था और वो रजस्वला थी। अतः वह नदी पार करके उस बट वृक्ष के नीचे नहीं आ सकती थी। क्योंकि शतभिषा नक्षत्र में सर्प पानी का स्पर्श नहीं करते हैं। क्योंकि शतभिषा नक्षत्र में यदि नागिन पानी का स्पर्श करें तो सात जन्म तक निसंतान रहती है।अतः नागिन ने नदी के उस पार से ही समस्त दृश्यों को देखा, और अपने पति को उस लड़की के कब्जे में देखकर,उसने वहीं से चेतावनी देते हुए कहा कि,:-"ओ दुष्टा! मेरे पति को छोड़ दें वरना जिस तरह से तुम्हारे सभी जेठों को मारा , तुम्हें भी तुम्हारे सभी सगे संबंधियों सहित मार डालूंगी"। इस पर उस लड़की ने नागिन के तरफ बड़े के टुकड़े को फेंकते हुए बोली कि,"पहले मेरे सभी बड़े को जिला फिर पति ले जा"। नागिन ने कहा:-" पहले मेरे पति को छोड़ो फिर तुम्हारे मरे को मैं जिला दूंगी"। बहुत देर तक दोनों में रस्साकशी चली। मगर नागिन का जब कोई बस नहीं चला। तो उसने अपने एक सहयोगी नाग को बुलाकर कहा कि,-" जाओ! नाग लोक से अमृत ले आओ। नागिन के आदेशानुसार उस नाग ने अमृत लाकर उस लड़की को दे दिया। लड़की ने भी उस अमृत को अपने मृत जेठों के राख पर छिड़का। और उसके सभी जेठ जिंदा हो उठे।नाग नागिन ने भी उस लड़की को आशीर्वाद दिया कि,जो कोई जेठ अमावस्या के दिन, तुम्हारी कहानी को सुनेगा,उसे नागों का भी कोई भय नहीं रहेगा। उधर पंडित जी भी अपने सभी बच्चों को जिंदा देखकर अति प्रसन्न थे। उन्होंने अपने घर पर अपनी पत्नी को संवाद भिजवा दिया कि,स्वागत के लिए ०6 थाल तैयार करो।सभी पुत्रवधुओं को कहो कि, वह लोग सुहागन का जोड़ा धारण कर ले। क्योंकिउनके पति भी जिंदा होकर वापस लौट रहे हैं। पंडिताइन को सहसा, यह सुनकर विश्वास नहीं हुआ। वह यह सोच रही थी कि,भला मरे हुए लोग कैसे जिंदा हो उठ सकतें हैं? वह छत पर चढ़कर सब देखने लगी। अपने सभी पुत्रों को दूल्हे के वेश में आते देखकर,उनकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहा। बड़े हर्षोल्लास से अपने सभी पुत्रों और अपनी इस नईबहू का स्वागत किया। बहू ने सारी कहानी उन्हें सुना दी। इस कहानी को सुनकर पंडित जी ने और पंडिताइन ने बहु को आशीर्वाद दिया और कहा कि,:-" जिस तरह से वट सावित्री के दिन सत्यवान और सावित्री की पूजा होती है, उनकी कहानी सुनी जाती है, वैसे ही आज से तुम्हारी भी कहानी सुनी और सुनाई जाएगी।और जो भी इस कहानी को सुनेगा वह सदा सुहागन रहेगी।
Moral, mythological and historical stories ke is aank me आपने वट -सावित्री व्रत कथा के अंतर्गत, नाग और नागिन की इस कहानी को जाना, इस कहानी का मोरल यह है कि,मानव अगर कुछ ठान लें तो कोई भी असंभव कर्म कर सकता है, जैसे उस दृढ़ निश्चय लड़की ने किया। धन्यवाद।
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