Nice story about Gandhi Ji(लाठी का रहस्य)

Technical mythology
       Moral, mythological and historical stories ke is aank me Maine Aaj आप सभी से, गांधीजी के, लाठी से, जुड़े कुछ रहस्यों को, बताने जा रहा हूं।दोस्तों! आपने अक्सर गांधी जी के फोटो को देखा होगा। जिसमें वह हमेशा लाठी लिए दिखते हैं, चाहे वह कोई आंदोलन की हो या कोई सभा की, हर जगह गांधीजी की तस्वीर , बिना लाठी के पूरी नहीं होती।आखिर क्या है उनके इस लाठी का रहस्य? क्यों बिना लाठी के गांधी जी का कोई चित्र पूरा नहीं होता?आज आप इसी रहस्य को इस ब्लॉग पोस्ट में जानेंगे।
        बिहार के मुंगेर जिले में घोरघाट नाम का एक गांव है। यह गांव,बरियारपुर थाने से, ०8 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। इसी गांव का एक टोला है, कठाई टोला। इसी टोले में, उस वक्त एक खास किस्म की लाठी का निर्माण किया जाता है था। इस लाठी का उस वक्त कई देशों में काफी डिमांड था। नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान और खुद ब्रिटेन  मेंे भी इस लाठी की बहुत मांग थी। उस वक्त इन देशों की पुलिस का प्राथमिक हथियार लाठी ही होता था। और इस लाठी की सप्लाई इसी मुंगेर जिले के कटाई टोला से होता था।अब सवाल ये उठता है, कि यह लाठी पूरे भारत में इतनी फेमस क्यों थी, कि विदेश तक में इसका निर्यात होता था? इसका जवाब यह है कि, यह लाठी, हवेली खड़कपुर के जंगलों से लकड़ी को मंगवा कर बनाई जाती थी। और इसके बाद एक खास तकनीक से, इस पर तेल और चूने को डालकर इस को आग में सेंका जाता था। जब यह तेल और चूना इस लाठी में जब जज्ब हो जाता था। तब यह बेहद ही मजबूत हथियार बन जाता था। इस लाठी का उपयोग मुगल काल में भी होता रहा है। भारत में, ब्रिटिश पुलिस भी, इसी लाठी का उपयोग सत्याग्रहियों पर लाठी चार्ज करने में किया करती थी। साइमन कमीशन के विरोध केवक्त, इसी जगह की बनी एक लाठी के प्रहार से  ही, स्वतंत्रता सेनानी, लाला लाजपत राय की मृत्यु हुई थी। अब सवाल यह उठता है कि, ऐसी लाठी, गांधी जी के पास कैसे पहुंची? वह तो अहिंसा प्रिय थे। तो इसका जवाब यह है कि, अप्रैल 1934 में, बिहार में,भीषण भूकंप आया था।उस भूकंप में, मुंगेर में, भयानक तबाही हुई थी। महात्मा गांधी भी इस  भयानक भूकंप के बाद,वहां की, स्थिति का जायजा लेने घोरघट पहुंचे थे। जब वह घोरघाट पहुंचे थे,तो गांव वालों ने, उन्हें यही लाठी उन्हें भेंट की। मगर गांधीजी इस लाठी की कहानी को जानते थे। अतः उन्होंने, इस लाठी को स्वीकार करने से इंकार कर दिया।गांव वालों ने उनसे आग्रह किया कि, आप इस लाठी को स्वीकार करें।गांव वालों के मान मनुहार पर गांधी जी ने इस लाठी को तो स्वीकार कर लिया। लेकिन यह शर्त रखी कि, आज से इस लाठी की सप्लाई अंग्रेजों को कदापि नहीं की जाएगी क्योंकि वह इसका इस्तेमाल सत्याग्रही ओं के विरुद्ध करते हैं।उनकी इस शर्त को, गांव वालों ने मान लिया। उसके बाद गांधीजी ने, आजीवन अपने साथ इस लाठी को रखा। और फिर यह लाठी उनकी संगनी बन गई। हमेशा यह उनके साथ रही।मरते दम तक भी गांधी जी के हाथ में यह लाठी रही।गांव वालों ने भी, गांधीजी के शर्त के मुताबिक,अंग्रेजों को इस लाठी की सप्लाई बंद कर दी। ताकि सत्याग्रह यों के खिलाफ, अंग्रेज इसका उपयोग ना कर सके।बाद में, यहां प्रतिवर्ष, यादगार के तौर पर, लाठी महोत्सव का आयोजन किया जाने लगा।
                 तो आज आपने , MORAL, mythological and historical stories ke is aank me आपने गांधीजी के लाठी से जुड़े रहस्य को जाना, धन्यवाद।

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