इच्छाओं की किमत.(cost of desire)
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अंक में, मैं आपको एक अच्छी सी, कहानी सुना रहा हूं ,, बात उस समय की है, जब हमारे देश में गुरुकुल परंपरा चलती थी .उस वक्त छात्र लोग गुरुओं के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे! काशी में एक मेधावी छात्र था, जिसका नाम दीपक था.
दीपक को, उसके माता-पिता ने, एक परम पूज्य आचार्य ,आचार्य विष्णुगुप्त के आश्रम में शिक्षा हेतु भेजा था .विष्णुगुप्त अपने समय के प्रसिद्ध आचार्य थे .दीपक भी अपने गुरु विष्णु गुप्त पर बहुत विश्वास करता था.और वह यह मानता था कि, उसके गुरु दिव्य शक्ति संपन्न महान व्यक्ति हैं .जो एक दिन उसकी सभी आकांक्षाओं को अवश्य पूरा करेंगे .हालांकि वह अपने गुरु जी से, कभी इस बात का जिक्र नहीं कर पाता था .इसलिए सदा परेशान रहता था.गुरुजी ने उसकी मनःस्थिति को भांप लिया था .एक दिन वह अपने शिष्य दीपक को, साथ लेकर जंगल की ओर गए. बीच जंगल में पहुंच कर उन्होंने कहा -:"अब यहां से निकल पाना बहुत मुश्किल लगता है.हम अगर रात में यहां रुके तो, जंगली जानवरों का खतरा भी है ,बहुत संभव है कि, हम इनका भोजन बन जाए."इस बात से शिष्य दीपक के मन में भय बैठ गया .और उसने गुरु जी से कहा कि:- ,"मैंने तो बहुत सारे सपने आपसे संजोए थे, लेकिन उनमें से एक भी पूरा नहीं हुआ .मैं आपको बड़ा सिद्ध पुरुष मानता था.किंतु आप भी एक साधारण मानव ही निकले. किसी और गुरु के साथ रहता, तो मेरे सपने जरूर पूरे हो जाते.लेकिन आप तो मुझे मृत्यु के मुंह में ले आए हैं.गुरु घबराए शिष्य के साथ एक वृक्ष के नीचे बैठे, और पूछा :-"क्या तुम्हारे सपने अभी अधूरे हैं? "शिष्य ने हां में उत्तर दिया .गुरुजी ने हंसकर कहा:-" यदि तुम चाहो ,तो मैं तुम्हारे सारे सपने को पल भर में साकार कर सकता हूं . दीपक की आंखें चमक उठी.उसने कभी भी नहीं सोचा था ,कि ,गुरु जी ऐसा बोलेंगे .खुश होते हुए दीपक ने कहा कि, :-"हां !जल्दी से जल्दी आप मेरी इच्छाओं को पूर्ण करें .गुरुजी ने कहा :-" तुम्हारी इच्छाएं पूर्ण तो होगी ,लेकिन तुम्हें, अपने पास मौजूद किसी चीज को खोने के लिए तैयार रहना होगा ."गुरुजी पुनः बोले:-" संसार में कोई भी चीज मुफ्त नहीं होती.कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है .मैं तुम्हारे सारे सपने पूरे कर दूंगा, किंतु, दक्षिणा स्वरूप, तुम्हें भी कुछ देना होगा.दीपक बोला:-" हां! हां !जरूर दूंगा.तब महर्षि ने कहा कि, "पुत्र !तुम्हें दक्षिणा स्वरूप ,अपनी हथेली काटकर देनी होगी.दीपक यह सुनकर बहुत घबरा गया.वह सोचा ":-यदि इच्छाओं के लिए, हाथ की कुर्बानी देने पड़े ,तो ऐसी इच्छाओं से बेहतर है कि, ऐसे ही रहा जाए.थोड़ा रुक कर वह बोला:-" गुरु जी! यदि इस शर्त पर मुझे मनचाही वस्तु मिलती तो, मैं उससे दूर रहना ही पसंद करूंगा.तब गुरु जी ने स्नेह से उस को समझाया,:-"पुत्र! इस धरती पर जितनी भी चीजें हैं ,वह तभी तक सुंदर है ,जब तक हम उससे दूर है .जो वस्तु मनुष्य की दृष्टि से, जितनी अधिक दूर होती है, उतनी ही आकर्षक जान पड़ती है.तुम जो भी चीज पाना चाहते हो, उसके लिए प्रकृति ने एक कीमत तय कर रखी है ,बच्चा बड़ा होने की चाह में बचपन बिताता है ,और बड़ा होने पर
फिर, बच्चा बन जाना चाहता है.इंसान को चाहे कितना भी कुछ क्यों न हासिल हो, फिर भी वह संतुष्ट नहीं हो पाता.एक चीज पाने पर कोई दूसरी चीज उसके पास से चली जाती है .जो आज धन के पीछे भाग रहा है, वह स्वास्थ्य नहीं देखता.फिर जब धन हासिल हो जाता है तो वह स्वास्थ्य के पीछे भागता है ,और धन छोड़ देता है.ईश्वर सिखाना चाहते हैं कि, तुम्हारे पास जो चीजें हैं, उसके लिए लाखों लोग तरसते हैं ,इसलिए जो चीजें तुम्हारे पास मौजूद है ,उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए.ईश्वर सबसे बड़ा है ".शिष्य को, गुरु जी की बात समझ में आ चुकी थी .उसने गुरु के चरणों में शीश झुकाया और गुरु जी ने उसे हृदय से लगा लिया .
आशा है कि, आप को मोरल, माइथोलॉजीकल और हिस्टोरिकल ब्लॉग के इस अंक में, मेरी यह कहानी आपको पसंद आएगी.आपको अगर यह कहानी पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में जरूर शेयर करें और लाइक करें .
धन्यवाद !आपका .
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