पराभव और दुख का कारण
Technical mythology रावण पुत्र मेघनाथ द्वारा पराजित और बंदी होकर ,इंद्र का देव- उचित ,तेज नष्ट हो गया था। जब मेघनाथ बंदी बनाकर, देवराज इंद्र को लंका ले जा रहा था, तो उनका सिर लज्जा से झुक गया। वह दुखी होकर चिंता में डूब कर, अपनी पराभव का कारण सोचने लगे । वह बार-बार ब्रह्मा जी को लक्ष्य करके कहने लगे, :-"हे प्रभु !मेरी इस दुर्दशा का क्या कारण है? मुझसे क्या भारी दुष्कर्म हो गया, जो आज मुझे यह अपमान और शोक झेलना पड़ रहा है"? तब ब्रह्मा जी उनके पास बंदी गृह आए, और उन्होंने कहा:-" देवराज !पहले मैंने अपनी बुद्धि से जिन प्रजा को उत्पन्न किया था, उन सब की अंग कांति, भाषा रूप ,सभी बातें एक जैसी थी। उनके रूप और रंग आदि में परस्पर कोई विलक्षणता नहीं थी। तब मैंने एकाग्र चित्त होकर उन प्रजाओ के विषय में ,विशेषता लाने के लिए कुछ विचार करने लगा। विचार के बाद उन सब प्रजाओ की अपेक्षा, विशिष्ट प्रजा को प्रस्तुत करने के लिए, मैंने एक अद्भुत नारी की सृष्टि की । उस अद्भुत रूप गुणों...