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Showing posts from May, 2022

पराभव और दुख का कारण

Technical mythology रावण पुत्र मेघनाथ द्वारा पराजित और बंदी होकर ,इंद्र का देव- उचित ,तेज नष्ट हो गया था।  जब मेघनाथ बंदी बनाकर, देवराज इंद्र को लंका ले जा रहा था, तो उनका सिर लज्जा से झुक गया। वह दुखी होकर चिंता में डूब कर, अपनी पराभव का कारण सोचने लगे । वह बार-बार ब्रह्मा जी को लक्ष्य करके कहने लगे, :-"हे प्रभु !मेरी इस दुर्दशा का क्या कारण है? मुझसे क्या भारी दुष्कर्म हो गया, जो आज मुझे यह अपमान और शोक झेलना पड़ रहा है"?                तब ब्रह्मा जी उनके पास बंदी गृह आए, और उन्होंने कहा:-" देवराज !पहले मैंने अपनी बुद्धि से जिन प्रजा को उत्पन्न किया था, उन सब की अंग कांति, भाषा रूप ,सभी बातें एक जैसी थी। उनके रूप और रंग आदि में परस्पर कोई विलक्षणता नहीं थी। तब मैंने एकाग्र चित्त होकर उन प्रजाओ के विषय में ,विशेषता लाने के लिए कुछ विचार करने लगा। विचार के बाद उन सब प्रजाओ की अपेक्षा, विशिष्ट प्रजा को प्रस्तुत करने के लिए, मैंने एक अद्भुत नारी की सृष्टि की ।                 उस अद्भुत रूप गुणों...

भाग्य और( कर्म) पुरुषार्थ

दुनिया के जितने भी नकारा, आलसी और सफल लोग है,उनमें 99% लोग भाग्य को कोसने वाले मिलते हैं। सफल उत्साही जागरूक लोगों में केवल, 5% ही पूरी तरह भाग्य को, और कुदरत को श्रेय देते हैं। दुनिया में कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए नहीं रह सकता है। थाली में भोजन भाग्य से तो आ सकता है ,परंतु ग्रास तोड़कर मुंह में डालना ही पड़ता है। नौकरी भाग्य से तो लग सकती है,परंतु उस पद पर बने रहने को तो पुरुषार्थ करना ही पड़ता है। पुरुषार्थ यानी सकारात्मक कर्म ,यह तो नहीं हो सकता ना, कि आप ,जलती आग में कूद जाओ और फिर कहो,भाग्य में होगा तो, नहीं जलेंगे। भाग्य एवं कर्म को दूसरे उदाहरण से भी समझ सकते हैं। कोई व्यक्ति कठिन परिश्रम करके, युक्ति से अपनी जीविका भी चलाएं और कुछ धन बैंक में भी जमा करते रहे। धीरे धीरे एक समय ऐसा आएगा कि, उसके पास इतना धन हो जमा हो जाएगा, जिसके ब्याज मात्र से ही ,उसका घर का खर्च चल जाएगा।अब काम करने की आवश्यकता ही,उसकी नहीं रहेगी। जिन लोगों ने इस व्यक्ति को मेहनत करते देखा होगा,वह तो संशय नहीं करेंगे। परंतु, जो लोग इस सच्चाई को नहीं जानते होंगे, वह नादान तो यही कहेंगे कि, देखो कैसा नसीब वाला...

अस्तित्व की ज्योति हृदय में जल उठी

 रमेश एक निर्धन पिता का पुत्र था ।उसका पिता दिन रात मेहनत मजदूरी करके किसी तरह से घर को चलाता था ।रमेश पढ़ाई में ,आम गरीब लड़कों के जैसे ही ,औसत दर्जे का एक अच्छा छात्र था। परंतु सुख सुविधाओं से वंचित होने के कारण एवं घर की मजबूरियों के कारण पढ़ाई की ओर कम  ही ध्यान दे पाता था ।रमेश ने प्लस टू  कीक्षपरीक्षा, प्रथम श्रेणी में पास की। उसके बाद उसने अन्य बच्चों की तरह ही राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग का टेस्ट दिया। उसके गरीब पिता ने बड़ी मुश्किल से ,उसके लिए फीस का इंतजाम किया किया था ।वह पिता के साथ मेहनत मजदूरी करने  गांव के धनाढ्य घरों में भी चला जाता था।                      इंजीनियरिंग टेस्ट का परिणाम आया तो उसकी रैंक बहुत  बहुत नीचे थी। वह बहुत मायूस हो गया। सब ने उसको कोसा। खासकर उसके पिता ने उसको खूब डांट फटकार लगाई। पिता ने उसको कहा-:" तू पढ़कर कौन से गुल खिलाएगा? तुझे कहा भी था कि ,पढ़ाई -लिखाई छोड़ मेहनत मजदूरी कर मेरे साथ। इतने पढ़े लिखे लोग धक्के खा रहे हैं, तू कौन सा अफसर बन जाता ?घर में तीन-तीन जवान ब...