अस्तित्व की ज्योति हृदय में जल उठी
रमेश एक निर्धन पिता का पुत्र था ।उसका पिता दिन रात मेहनत मजदूरी करके किसी तरह से घर को चलाता था ।रमेश पढ़ाई में ,आम गरीब लड़कों के जैसे ही ,औसत दर्जे का एक अच्छा छात्र था। परंतु सुख सुविधाओं से वंचित होने के कारण एवं घर की मजबूरियों के कारण पढ़ाई की ओर कम ही ध्यान दे पाता था ।रमेश ने प्लस टू कीक्षपरीक्षा, प्रथम श्रेणी में पास की। उसके बाद उसने अन्य बच्चों की तरह ही राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग का टेस्ट दिया। उसके गरीब पिता ने बड़ी मुश्किल से ,उसके लिए फीस का इंतजाम किया किया था ।वह पिता के साथ मेहनत मजदूरी करने गांव के धनाढ्य घरों में भी चला जाता था।
इंजीनियरिंग टेस्ट का परिणाम आया तो उसकी रैंक बहुत बहुत नीचे थी। वह बहुत मायूस हो गया। सब ने उसको कोसा। खासकर उसके पिता ने उसको खूब डांट फटकार लगाई। पिता ने उसको कहा-:" तू पढ़कर कौन से गुल खिलाएगा? तुझे कहा भी था कि ,पढ़ाई -लिखाई छोड़ मेहनत मजदूरी कर मेरे साथ। इतने पढ़े लिखे लोग धक्के खा रहे हैं, तू कौन सा अफसर बन जाता ?घर में तीन-तीन जवान बहने हैं, उनके ब्याह के लिए पैसे इकट्ठे करने हैं। और तू है कि बस..........."।
रमेश को पिता की बातें सुनकर, सारी रात नींद नहीं आई। वह चारपाई पर सारी रात करवट बदलता रहा। सोचता रहा, क्या मैं भी अपने पिता की तरह, सारी उम्र, दूसरों की चाकरी करता रहूंगा? मेरी मां सारी उम्र लोगों के बर्तन ही साफ करती रहेगी? बड़ी मुश्किल से घर का तो रोटी चलता है। नहीं -नहीं मैं मजदूरी नहीं करूंगा। वह कौन से लड़के हैं जो इंजीनियरिंग की परीक्षा को पास करते हैं ?क्या उनके दिमाग किसी अलग तरह के होते हैं ?मैं क्यों अच्छी रैंक नहीं ले सका? क्या कमी है मुझमें ?उसकी नींद जैसे पंख लगाकर उड़ गई हो ।उसके भीतर अपने अस्तित्व को खोजने की ज्योति प्रज्वलित हो गई थी।एक रोशनी उसके हृदय से निकलकर उसके सारे बदन में प्रसारित हो गई। वह सुबह तड़के उठा भगवान को याद किया। उसने पिता से कहा:-" पिता जी !मैं आपके साथ मजदूरी करने नहीं जाऊंगा। मैं किसी काम से जा रहा हूं ।यह कह कर वह घर से निकल पड़ा ,और गांव के सरपंच के घर जा पहुंचा।सरपंच धनाढ्य परिवार के पढ़े-लिखे व्यक्ति थे ।उनकी पत्नी भी अच्छे घर की शिक्षित लड़की थी।
रमेश ने सरपंच से हाथ जोड़कर कहा:-" चाचा केवल ₹500 रूपए उधार दे दो ।मेहनत दिहाड़ी करके लौटा दूंगा।"
सरपंच ने कहा :-"अरे रमेश! तू ₹500 रूपएका क्या करेगा। तेरा पिता तो मेहनत मजदूरी करता है।"
रमेश ने फिर हाथ जोड़कर सरपंच से कहा:-" चाचा मुझे इंजीनियरिंग का दोबारा परीक्षा देना है ।कृपया करके ₹500 रूपए उधार दे दो, मैं जरूर वापस कर दूंगा। मुझे टेस्ट देना ही है। सरपंच ने कहा:-"जा जाकर अपने बाप के साथ मेहनत मजदूरी कर ।परीक्षा-वरीक्षा के फिराक में मत पर ।तू पहले ही फेल हो चुका है ।क्या अब तू पास हो जाएगा? मेहनत मजदूरी करके अपने बहनों के हाथ पीले करने की सोच। परीक्षा -वरीक्षा के चक्कर में मत पर। परंतु रमेश ने फिर से हाथ जोड़ते हुए कहा:-"चाचा !भगवान की कसम ,बस एक बार ₹500 रूपए दे दो। पाई पाई चुका दूंगा। पास में खड़ी सरपंच की पत्नी ने कहा:-" दे दो लड़के को ₹500 रूपए कौन सी आफत आ गई है? फेल होता है तो हो जाए। ₹500रूपए से हमें कौन सा फर्क पड़ने वाला है ।लेकिन हो सकता है, शायद यह बेचारा पास हो जाए।" दर्शन ने कहा :-"चाची! मैं आपका एहसान सारी उम्र नहीं भूल सकता।₹500 दे दो बस"। सरपंच की पत्नी ने रमेश को स्नेहदृष्टि से देखते हुए ₹500 दे दिए।
बस फिर क्या था ?रमेश ने इंजीनियरिंग के टेस्ट का फॉर्म भरा। कुछ माह बाद उसका टेस्ट होना था। उसका पिता उसको कोसते रहा ,परंतु रमेश के मां के कहने पर चुप रहने लगा। इधर रमेश के ह्रदय में तो, मेहनत की ज्योति प्रज्वलित हो चुकी थी। उसकी रात की नींद गायब हो चुकी थी। बस वह सारा सारा दिन पुस्तकों में ही घूम रहा था। नींद मानो कोसों दूर चली गई हो। शायद ही रात को आधा घंटा ,एक घंटा सो लेता था ।दिन रात एक कमरे में बंद ,उसके मन में, एक संघर्ष, एक शक्ति का संकल्प ,संपूर्ण कर्म में बदल चुका था। आखिर टेस्ट (परीक्षा )का दिन आ ही गया। उसका टेस्ट अच्छे से हो गया।वह अपने पिता के साथ मजदूरी करने, यह सोच कर जाने लगा , कि अगर रैंक अच्छी ना आई, तो सरपंच के ₹500 कहां से दूंगा। अगले महीने एक सफेद रंग की कार ,रमेश के घर के आगे रूकी। रमेश तथा उसके पिता मजदूरी करके लौटे ही थे। दरवाजे की खटखटाने की आवाज सुनकर ,रमेश के पिता बाहर आए। कार वालों ने कहा कि, हम लोग पत्रकार हैं, क्या रमेश कुमार यहीं रहते हैं? उसके पिता ने कहा हां जी साहब, यही रहता है ।इतना कह कर वह, अंदर भागा-भागा आया और रमेश से कहने लगा,:-" अरे बेटा! क्या कारनामा कर के आए हो। बाहर पत्रकार लोग आए हैं, तुमसे मिलने।" रमेश उठकर बाहर गया, तो वह लोग अंदर आ गए ।उन्होंने कहा:-" बेटा !रमेश कुमार आप ही का नाम है। आप इंजीनियरिंग के टेस्ट में पूरे राज्य में प्रथम आए हो ।हम आपके बारे में अखबारों में कुछ लिखने आए हैं । आप अपने कुछ फोटोग्राफ हमें दो। हम इन्हें अपने अखबार में छापेंगे। रमेश यह सुनकर हैरान था। उसे इस खबर पर यकीन नहीं हो रहा था। खुशी में उसके रोएं खड़े हो गए ,जैसे वह हवा में उड़ रहा हो। उसका पिता तो जैसे दिन में तारे देख रहा हो। उसकी मां और बहनों खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। यह खबर पूरे गांव में भी फैल गई। सरपंच भी उसके घर पे अपनी पत्नी के साथ आ पहुंचा और ऊंचे स्वर में बोला :-"रमेश !तुमने पूरे गांव का नाम रोशन कर दिया। सारे राज्य में,पुरे देश में, तूने मेरे गांव का नाम रोशन कर दिया"। रमेश के हृदय की लोनी, संघर्ष शक्ति तथा विद्या से, तपस्या को सार्थक रूप दे दिया था ।उसके हृदय में मेहनत की ज्योति प्रज्ज्वलित हो गई थी।उसका सपना साकार हो उठा था।
सच कहते हैं कि, मेहनत का फल मीठा ही होता है। यही फल रमेश को अब मिल रहा था।
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