भाग्य और( कर्म) पुरुषार्थ
दुनिया के जितने भी नकारा, आलसी और सफल लोग है,उनमें 99% लोग भाग्य को कोसने वाले मिलते हैं। सफल उत्साही जागरूक लोगों में केवल, 5% ही पूरी तरह भाग्य को, और कुदरत को श्रेय देते हैं। दुनिया में कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए नहीं रह सकता है। थाली में भोजन भाग्य से तो आ सकता है ,परंतु ग्रास तोड़कर मुंह में डालना ही पड़ता है। नौकरी भाग्य से तो लग सकती है,परंतु उस पद पर बने रहने को तो पुरुषार्थ करना ही पड़ता है। पुरुषार्थ यानी सकारात्मक कर्म ,यह तो नहीं हो सकता ना, कि आप ,जलती आग में कूद जाओ और फिर कहो,भाग्य में होगा तो, नहीं जलेंगे। भाग्य एवं कर्म को दूसरे उदाहरण से भी समझ सकते हैं। कोई व्यक्ति कठिन परिश्रम करके, युक्ति से अपनी जीविका भी चलाएं और कुछ धन बैंक में भी जमा करते रहे। धीरे धीरे एक समय ऐसा आएगा कि, उसके पास इतना धन हो जमा हो जाएगा, जिसके ब्याज मात्र से ही ,उसका घर का खर्च चल जाएगा।अब काम करने की आवश्यकता ही,उसकी नहीं रहेगी। जिन लोगों ने इस व्यक्ति को मेहनत करते देखा होगा,वह तो संशय नहीं करेंगे। परंतु, जो लोग इस सच्चाई को नहीं जानते होंगे, वह नादान तो यही कहेंगे कि, देखो कैसा नसीब वाला है, मजे से पड़ा- पड़ा खा रहा है।परंतु दोस्तों सच यही है कि, जो पिछले जन्म में अच्छा करके आया है,उसको अल्प श्रम करने पर भी अधिक प्राप्त होता है।जो नहीं कर के आया है, उसको अब करना पड़ेगा,तभी आगे उसको मिलेगा।
किसी सेठ के यहां एक सज्जन व्यक्ति नौकरी करता था,बिना छुट्टी लिए । वह व्यक्ति ईमानदारी से अपने मालिक के हित में प्रसन्नता पूर्वक लगा रहता था। कुछ वर्ष उपरांत,वह व्यक्ति बिना बताए काम पर नहीं आया। सेठ ने सोचा कि, मैं उसको कम वेतन देता था, अतः कहीं दूसरी जगह अधिक वेतन पर चला गया। तीन दिन बाद जब सेवक आया तो, सेठ ने पूरा वेतन देकर ₹1000 और बढ़ा दिए,सेवक कुछ ना बोला, काम चलता रहा ।कुछ दिन बाद पुनः,अचानक वह सेवक बिना बताए काम पर नहीं आया। 12 दिन बाद जब वह काम पर आया,तब सेठ ने मन में सोचा, इसको लोभ आ गया है।यह अपना वेतन बढ़ाने के चक्कर में, हमको नखरे दिखा रहा है ।अबकी बार सेठ वेतन तो दिया, मगर ₹1000 कम कर दिए। सेवक ने चुपचाप पैसे रखे लिए और काम पर पूर्ववत आने लगा। न खुशी, न गम, न सुख न कोई शिकवा- शिकायत। सेठ चकित था, उसने पूछा,:-" भाई! तुम बाबा हो क्या? ₹1000 बढ़ाए तो कोई खुशी नहीं। ₹1000 घटाएं, तो कोई दुख नहीं। क्या मामला है भाई? क्यों छुट्टियां की बिना बताए" ?विनम्रता पूर्वक, वह व्यक्ति बोला:-" सेठ जी!पिछली बार मेरे घर में बालक का जन्म हुआ था। अतः बताने का अवसर नहीं मिला। मुझे घर पर रहना पड़ा। जब आपने ₹1000 दिए, तो मुझे लगा कि, भगवान ने ,उसके आते ही व्यवस्था कर दी है। इस बालक का ,भाग्य तो अभी से काम करने लगा है"। सेठ का ह्रदय भावुक हो गया। उसने पूछा, :-"भाई !इतनी खुशी का समाचार, हमें क्यों नहीं बताया"? अच्छा, यह बताओ जब, ₹1000 घटाएं, तब क्यों शिकायत नहीं की? क्यों शांत बने रहे? सेवक बोला,:-" सेठ जी! अचानक, मेरी बूढ़ी मां का देहांत हो गया। उसके संस्कार आदि में 12 दिन लग गए थे। जब मैं काम पर आया तो आपने ₹1000 कम दिए ।तो मैंने भगवान को धन्यवाद दिया ,तथा सोचा, वाह! प्रभु ,मां गई तो, उसका भाग्य भी समेट लिया,आप सचमुच बड़े दयालु हो प्रभु। आप जिस स्थिति में मुझे रखो ,मैं बस अपना काम ,अपना कर्म इमानदारी पूर्वक करता रहूंगा, अपने प्रारब्ध को कोसुगां नहीं। सेठ ने सेवक को प्रणाम करते हुए बोला,:-" महाराज! आप सचमुच बड़े संत हैं ।मैं आपको अपना गुरु मानता हूं"।
इस तरह से ,जीवन में भाग्य और पुरुषार्थ अर्थात कर्म ,दोनों संग- संग चलते हैं ।काम करते रहो, ईश्वर का नाम रटते रहो उनको कोसो नहीं।
धन्यवाद आपका।
Comments
Post a Comment
Okay