पराभव और दुख का कारण

Technical mythology
रावण पुत्र मेघनाथ द्वारा पराजित और बंदी होकर ,इंद्र का देव- उचित ,तेज नष्ट हो गया था।  जब मेघनाथ बंदी बनाकर, देवराज इंद्र को लंका ले जा रहा था, तो उनका सिर लज्जा से झुक गया। वह दुखी होकर चिंता में डूब कर, अपनी पराभव का कारण सोचने लगे । वह बार-बार ब्रह्मा जी को लक्ष्य करके कहने लगे, :-"हे प्रभु !मेरी इस दुर्दशा का क्या कारण है? मुझसे क्या भारी दुष्कर्म हो गया, जो आज मुझे यह अपमान और शोक झेलना पड़ रहा है"? 
              तब ब्रह्मा जी उनके पास बंदी गृह आए, और उन्होंने कहा:-" देवराज !पहले मैंने अपनी बुद्धि से जिन प्रजा को उत्पन्न किया था, उन सब की अंग कांति, भाषा रूप ,सभी बातें एक जैसी थी। उनके रूप और रंग आदि में परस्पर कोई विलक्षणता नहीं थी। तब मैंने एकाग्र चित्त होकर उन प्रजाओ के विषय में ,विशेषता लाने के लिए कुछ विचार करने लगा। विचार के बाद उन सब प्रजाओ की अपेक्षा, विशिष्ट प्रजा को प्रस्तुत करने के लिए, मैंने एक अद्भुत नारी की सृष्टि की । 
               उस अद्भुत रूप गुणों से उपलक्ष्य, जिस नारी का मेरे द्वारा निर्माण हुआ, उसका नाम अहिल्या था। मैंने धरोहर के रूप में, महर्षि गौतम के हाथ में ,उस कन्या को सौंप दिया। वह बहुत वर्षों तक उनके यहां रही। फिर गौतम ने मुझे उसे लौटा दिया । महामुनी गौतम के उस महान इंद्रिय संयम, तथा तपस्या विषयक, सिद्धि को जानकर, मैंने वह कन्या उन्हीं को, पत्नी रूप में सौंप दी । 
               धर्मात्मा महामुनी गौतम ,उसके साथ सुख पूर्वक रहने लगे। जब अहिल्या गौतम को दे दी गई ,तब तुम सभी देवता निराश हो गए। तुम्हारे क्रोध की सीमा न रही। तुम्हारा मन काम के अधीन हो चुका था। इसलिए तुमने मुनि के आश्रम पर जाकर, अग्निशिखा के समान प्रज्वलित होने वाली,उस दिव्य सुंदरी को देखकर,तुमने काम से प्रेरित होकर उसके साथ छल किया।उस समय उस महर्षि ने, अपने आश्रम में तुम्हें देख लिया । देवेंद्र! इससे, उन परम तेजस्वी महर्षि को बड़ा क्रोध हुआ और उन्होंने तुम्हें श्राप दे दिया । उन्होंने श्राप देते हुए कहा ,:-"वासव! शक्र ,तुमने निर्भय होकर मेरी पत्नी के साथ और छल पूर्वक व्यवहार किया है। इसलिए तुम युद्ध में जाकर, शत्रुओं के हाथ में पड़ जाओगे। तुम्हारा सारा वैभव, सारा गर्व, नष्ट हो जाएगा। हे शक्र!उसी श्राप के कारण, तुम, राक्षसों के कैद में पड़े हो।दूसरे किसी कारण से नहीं"। .   
🙏💕धन्यवाद आपका। 

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